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क्या ब्रिक्स मुद्रा डॉलर की जगह लेगी?

ब्रिक्स की प्रस्तावित आरक्षित मुद्रा देशों को पश्चिमी प्रतिबंधों और वित्तीय संकटों से बचाकर वैश्विक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकती है, इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल डायलॉग के वरिष्ठ शोध सहयोगी और दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स थिंक टैंक नेटवर्क के सदस्य अशरफ पटेल ने Sputnik को बताया। क्या ब्रिक्स की नई मुद्रा डॉलर की जगह लेगी?
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ब्रिक्स समूह ने शंघाई स्थित न्यू डेवलपमेंट बैंक से उस जानकारी का अनुरोध किया है कि नई संभावित साझी मुद्रा वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा कैसे दे सकती है और समूह के सदस्यों को पश्चिमी प्रतिबंधों से कैसे बचा सकती है। इस संदर्भ में, अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के अनुसार, ब्रिक्स की साझी मुद्रा अमेरिकी डॉलर की जगह ले सकती है।
अशरफ पटेल ने Sputnik को बताया, "ब्रिक्स में वैश्विक मामलों में 'व्यापक आधार पर आर्थिक स्थिरता' सुनिश्चित करने की क्षमता है, साथ ही वह प्रमुख क्षेत्रों में वैकल्पिक प्लेटफॉर्मों को बनाता है, जिनमें से एक ब्रिक्स की आरक्षित मुद्रा है।"
"ब्रिक्स की आरक्षित मुद्रा सबसे आशाजनक संभावना है। द्विपक्षीय स्तरों (चीन-ब्राजील, आदि) और क्षेत्रीय स्तरों (ब्राजील-अर्जेंटीना) पर काम करते हुए यह व्यापार प्रवाह को बढ़ा सकता है। [...] जैसा कि पिछले कई महीनों के दौरान ऋण सीमा के अमेरिकी संकट ने दिखाया है, अमेरिकी घरेलू वित्तीय प्रणाली अस्थिर है, और व्यापार युद्धों आदि के माध्यम से इस ऋण का 'वैश्विक स्तर पर फिर से निर्यात' किया जाता है। तो हाँ, 2023 की वर्तमान दुनिया में वैकल्पिक मुद्रा का अवसर अधिक संभव है।"
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ब्रिक्स की मुद्रा का उद्देश्य क्या है?

1 जून को केप टाउन में दो दिवसीय बैठक शुरू हुई थी जिस में ब्रिक्स के विदेश मंत्रियों के साथ-साथ सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और कजाकिस्तान सहित देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
जनवरी में इस समूह ने घोषणा की थी कि वह जल्द ही अमेरिकी डॉलर को हटाने के लिए अपनी मुद्रा की स्थापना की संभावना का अध्ययन करेगा। माना जाता है कि रूस पर पश्चिम के व्यापक प्रतिबंध दुनिया भर में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए नकारात्मक संकेत बन गए। लेकिन क्या अमेरिकी डॉलर को विश्व मुद्रा के रूप में बदला जा सकता है?
रूसी विदेश मंत्री सर्गे लवरोव ने जनवरी 2023 के अंत में अपनी अफ्रीका यात्रा के दौरान ब्रिक्स की साझी मुद्रा की अवधारणा के बारे में बताया था। उसी समय, ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने अर्जेंटीना के अपने समकक्ष अल्बर्टो फर्नांडीज के साथ इस मामले पर चर्चा की थी। उसके बाद से ब्रिक्स के सदस्य उस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या डॉलर को वैश्विक मुद्रा के रूप में बदला जा सकता है।
लूला दा सिल्वा के अनुसार, लैटिन अमेरिका और ब्रिक्स देशों के लिए वैश्विक दक्षिण के बहुपक्षीय व्यापार और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए डॉलर से इनकार करने का समय आ गया है। "किसने तय किया कि सोने के युग के अंत के बाद डॉलर (व्यापार) मुद्रा होगा?" ब्राजील के राष्ट्रपति ने अप्रैल में न्यू डेवलपमेंट बैंक की अपनी यात्रा के दौरान पूछा।
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यह मुद्रा कैसे काम करेगी?

जुलाई 2014 में ब्रिक्स देशों ने न्यू डेवलपमेंट बैंक नामक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठन की स्थापना की थी, जिसका मुख्य लक्ष्य इस समूह के सदस्य राज्यों की बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को वित्तपोषित करना है। इसके साथ यह विकासशील देशों के लिए विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के विकल्प के रूप में काम करता है।
रूस के वित्त मंत्री एंटोन सिलुआनोव के अनुसार, अगर ब्रिक्स की साझी मुद्रा का विचार अमल में लाया जाएगा, तो न्यू डेवलपमेंट बैंक उस प्रकार का केंद्र बन सकता है, जो माल की पारस्परिक आपूर्ति की स्थिति में भुगतानों के मुद्दे को आसान करेगा।
रूसी आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, भविष्य में ब्रिक्स की साझी मुद्रा भुगतान का साधन बन सकती है और इस समूह के सदस्यों के लिए ही नहीं, अन्य राज्यों के लिए भी आरक्षित मुद्रा का दर्जा प्राप्त कर सकती है।
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क्या ब्रिक्स की मुद्रा संभव है?

रूसी अर्थशास्त्री मिखाइल खाज़िन ने जनवरी के अंत में Sputnik को बताया था कि उनकी उम्मीद है कि ब्रिक्स की संभावित साझी मुद्रा धीरे-धीरे अपनाई जाएगी। उनके अनुसार, सबसे पहले कई नए मुद्रा क्षेत्र दिखाई देंगे और उसके बाद यानी लगभग 10 वर्षों के बाद यूरो के समान ब्रिक्स की साझी मुद्रा "सुपरस्ट्रक्चर" के रूप में सामने आएगी।
खाज़िन ने यह भी कहा था कि अब बहुपक्षीय व्यापार में पश्चिमी प्रतिबंधों को हटाने के लिए ब्रिक्स देशों के लिए साझी भुगतान प्रणाली को बनाना तर्कसंगत होगा। गौरतलब है कि ब्रिक्स पे नामक ऐसी प्रणाली को 2018 में प्रस्तावित किया गया था। इस समूह के सदस्य देशों द्वारा डिजिटल भुगतान की प्रणाली को संयुक्त रूप से बनाया जा रहा है।
मई की शुरुआत में Sputnik से बात करते हुए, भू-राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार पेपे एस्कोबार ने सुझाव दिया था कि अमेरिकी "कैसीनो पूंजीवाद" को लेकर बढ़ते वैश्विक असंतोष के कारण डी-डॉलरकरण की प्रक्रिया सफल रूप से बढ़ रही है।
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क्या ब्रिक्स की मुद्रा खतरा है?

केप टाउन में बैठक के दौरान, रूसी विदेश मंत्री लवरोव ने बताया कि पश्चिमी-केंद्रित समूहों के विपरीत, "ब्रिक्स समानता, आपसी सम्मान, आम सहमति, आंतरिक मुद्दों में गैर-हस्तक्षेप और अपने सभी सिद्धांतों और अपने सभी संबंधों के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सख्त पालन के सिद्धांतों पर आधारित नया संगठन है।"
केप टाउन की बैठक के दौरान आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिन में इस समूह का विस्तार भी शामिल था। अब लगभग 19 देश समूह में शामिल होना चाहते हैं। लवरोव के अनुसार, यह बढ़ती रुचि उस तथ्य से संबंधित है कि समूह "बहुध्रुवीय दुनिया के विकास का प्रतीक है, जिस पर अधिक से अधिक बार चर्चा की जा रही है।"
ब्रिक्स के तेजी से विस्तार को साझी मुद्रा बनाने के लिए एक और कारण कहा जाता है, जो न केवल अमेरिकी डॉलर के विकल्प के रूप में काम करेगी, बल्कि ‘विन-विन अप्रोच’ के आधार पर वैश्विक आर्थिक स्थिरता को भी सुनिश्चित करेगी।
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