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बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने मिनटों में पानी साफ करने का तरीका खोज लिया

बेंगलुरू में वैज्ञानिकों ने एक नए प्रकार का एंजाइम मीमेटिक विकसित किया है जो सूरज की रोशनी के साथ कारखानों से निकलने वाले पानी से रसायनों को सफलतापूर्वक निकाल देता है।
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स्वच्छ पानी जीवन का मुख्य अंग है लेकिन अभी भी यह पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है, दुनिया के कुछ देश अभी भी दूषित पानी पीने पर मजबूर हैं, ऐसी ही समस्या से निजात पाने के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) के मटीरियाल रिसर्च सेंटर (MRC) के सहायक प्रोफेसर और उनकी टीम ने एक एंजाइम विकसित किया है जो सूर्य के प्रकाश की मदद से औद्योगिक अपशिष्ट जल को साफ करने में सक्षम है।
एंजाइम एक तरह के प्रोटीन होते हैं जो जीवित प्रणालियों में अधिकांश जैविक प्रक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं। हालाँकि, प्राकृतिक एंजाइमों का व्यावहारिक उपयोग कुछ चुनौतियों के कारण बहुत बाधित होता है।
प्रयोगशाला में निर्मित नैनो-आकार के एंजाइम मिमेटिक्स या "नैनोजाइम" ऐसे प्राकृतिक एंजाइमों की नकल कर सकते हैं और इन व्यावहारिक चुनौतियों को दूर कर सकते हैं।
जब NanoPtA अपशिष्ट जल के संपर्क में आता है तो अणु में मौजूद बेंजीन के छल्ले और लंबी एल्काइल श्रृंखलाएं कई गैर-सहसंयोजक अंतःक्रियाएं बनाती हैं। व्यक्तिगत NanoPtA अणु एक साथ जुड़कर टेप जैसी संरचना बनाते हैं जो प्रकाश उत्सर्जित करना शुरू करते हैं जो इसकी ऑक्सीकरण क्षमता का मूल है। नैनोजाइम अपशिष्ट जल में मौजूद प्रदूषकों को सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ऑक्सीकरण करके नष्ट कर सकता है जिससे अपशिष्ट जल की विषाक्तता कम हो जाती है।
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शोधकर्ता और टीम के मेन्टर सुबिनॉय राना ने फिनोल और डाई जैसे पानी को प्रदूषित करने वाले सामान्य अपशिष्टों पर नैनोजाइम के प्रभाव का परीक्षण किया। उन्होंने पाया कि सूरज की रोशनी में रखने पर यह दस मिनट के भीतर फिनोल और रंगों की छोटी (माइक्रोमोलर) मात्रा को भी नष्ट कर सकता है।
एंजाइमों का बड़े पैमाने पर उत्पादन एक महंगी और समय लेने वाली प्रक्रिया है। Sputnik ने MRC में सहायक प्रोफेसर और नैनोस्केल में प्रकाशित पेपर के संबंधित लेखक सुबिनॉय राणा से बात की तब उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने किस तरह से इस एंजाइम को बनाया और यह किस तरह के पानी को साफ करने में सक्षम है।
"यह एक ऐसी सामग्री है जो सूरज की रोशनी की उपस्थिति में उद्योगों से निकले विभिन्न जहरीले रसायनों को नष्ट कर सकती है। इन उद्योगों से निकले पानी में अलग-अलग विभिन्न प्रकार के यौगिक होते हैं जिन्हें नष्ट किया जा सकता है। इसलिए, हमारे एंजाइम के उपयोग से जहरीले रसायनों को आसानी से खत्म किया जा सकता है," शोधकर्ता सुबिनॉय राणा ने Sputnik को बताया।
संस्थान द्वारा जारी किए गए एक बयान के मुताबिक वर्तमान अध्ययन में, IISC टीम ने नैनो पीटीए नामक प्लैटिनम युक्त नैनोजाइम को संश्लेषित किया जिसे औद्योगिक उपयोग के लिए पाउडर के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। यह ऑक्सीडाइज के कार्य की नकल करता है।
MRC में सहायक प्रोफेसर प्रयोगशाला राणा ने Sputnik को बताया कि प्रयोगशाला के स्तर पर हमने साबित किया है कि 5 से 10 मिनट के भीतर एंजाइम मिमिक जहरीले रसायनों को बहुत आसानी से नष्ट कर देता है।

"मिमिक मूल रूप से एक एंजाइम की तरह से काम करता है और यह उन संभावित चुनौतियों का समाधान करने में सहायक है जो हमारे पास प्राकृतिक एंजाइमों के लिए हैं और हमने हमारे पेपर में साबित किया है कि यह एंजाइम जैसे व्यवहार का पालन भी करता है। इसलिए हम इस एंजाइम को मिमेटिक कहते हैं," सहायक प्रोफेसर प्रयोगशाला राणा ने कहा।

आगे उन्होंने कहा कि इस एंजाइम मिमिक का उपयोग करके हम मूल रूप से प्रदूषित पानी में और विशेष रूप से उद्योग से निकले पानी से जहरीले रसायनों को कम कर सकते हैं, इसलिए हमारा मानना ​​है कि यह वास्तव में पर्यावरणीय सुधार में मदद करने के साथ साथ पानी को काफी आसानी से शुद्ध कर सकता हैं।
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प्रोफेसर ने आगे बताया कि इसके भंडारण एक लंबी प्रक्रिया है और इन्हें मिलीग्राम से अधिक मात्रा में बनाना मुश्किल है। इसके अलावा एक अन्य समस्या भंडारण की है जिसमें अधिकांश प्राकृतिक एंजाइम तापमान के प्रति संवेदनशील होते हैं और उन्हें ठंडे तापमान पर, अक्सर -20°C से भी कम तापमान पर भंडारण की आवश्यकता होती है।
"यह प्राकृतिक एंजाइमों की तुलना में काफी बेहतर है और यह कमरे के तापमान पर छह महीने से अधिक समय तक स्थिर रहती है और इसे प्राकृतिक स्थिति में बहुत आसानी से स्टोर कर सकते हैं लेकिन प्राकृतिक एंजाइमों को वास्तव में +4 या -20 पर रखना होगा। इसके अलावा इन्हें मूल रूप से फ़ील्ड दबाव में रखने की ज़रूरत है," MRC में सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता ने कहा।
प्रोफेसर ने आगे बताया कि इस अध्ययन के परिणाम पानी को साफ करने के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी काम में लिए जा सकते हैं। इसका उपयोग न केवल जहरीले प्रदूषकों को तोड़ने के लिए बल्कि स्वास्थ्य देखभाल में भी इसका उपयोग हो सकता है।
टीम ने डोपामाइन और एड्रेनालाईन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर को ऑक्सीकरण करने की इसकी क्षमता का परीक्षण किया और पाया कि जब ऑक्सीकरण होता है तो इसके रंग में बदलाव दिखते हैं जिसका उपयोग उनके कनसनट्रेसन को मापने के लिए किया जा सकता है।
हमने दिखाया है कि "यह विभिन्न न्यूरोट्रांसमीटरों का पता लगा सकता है जो हमारे शरीर में मौजूद हैं तो यह एक चिकित्सीय एजेंट के रूप में भी शानदार होगा और अगर हम इस सामग्री को कैंसर कोशिकाओं या कुछ, समस्याग्रस्त कोशिकाओं के अंदर डालने में सक्षम होते हैं तो यह वास्तव में उन्हें मार सकता है क्योंकि इसमें ऑक्सीडेज गतिविधि होती है। मूल रूप से इसका उपयोग चिकित्सीय एजेंट के रूप में भी किया जा सकता है"
"आगे पता लगाने के बाद हम इसका उपयोग चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए भी कर सकते हैं और हमने समानांतर रूप से कुछ अन्य काम भी किए हैं इसलिए, हमारा मानना है कि इस बायोमेडिकल क्षेत्र में भी इस सामग्री की बहुत बड़ी संभावना है। तो, यह न केवल पर्यावरण निवारण बल्कि बायोमेडिकल क्षेत्र में भी मददगार हो सकता है और हम इसी पर काम कर रहे हैं," MRC विभाग में सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता सुबिनॉय राना ने कहा।
भारतीय विज्ञान संस्थान के MRC विभाग में सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता सुबिनॉय राना के अलावा टीम में रोहित कपिला, अलीशा कामरा, और भास्कर सेन भी थे जिन्होंने इस कार्य को संभव बनाने के लिए वास्तव में बहुत प्रयास किया है। टीम पिछले डेढ़-दो साल से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी जिनके बिना यह काम संभव नहीं था। सुबिनॉय राना ने इस खोज के लिए फंडिंग एजेंसी, भारत के ACRP और शिक्षा मंत्रालय को धन्यवाद किया।
आगे बढ़ते हुए, शोधकर्ता नैनोजाइम को पेटेंट कराने की योजना बना रहे हैं।
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