इसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में सैनिकों का जमावड़ा अत्यंत विषम है। साथ ही, चूंकि ऑक्सीजन की आपूर्ति सीमित है, इसलिए सैनिक का भार और हथियार ले जाने की क्षमता अत्यंत कम हो जाती है।
"आजकल लद्दाख में सेना और उपकरण की स्थायी रूप से नियुक्ति हैं। यह मात्र लद्दाख में ही नहीं है, बल्कि पूरे सीमावर्ती क्षेत्र के लिए एक प्रणाली बनाई गई है। वहां से कोई भी उपकरण वापस नहीं जाता है, जिसकी देखभाल की जाए या सीमा का प्रबंधन किया जाए, बल्कि यह एक स्थायी स्थिति है। हालांकि समय के साथ साथ कुछ नई सामग्री और उपकरण भेजे जाते हैं, जो समय-समय पर नवाचारित होते हैं और जिनकी नियुक्ति एक दैनिक क्रिया स्वरूप में होती रहती हैं," रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. राकेश शर्मा ने Sputnik भारत को बताया।
"आवश्यकता के अनुसार अस्पताल बनाए गए हैं, ताकि किसी सैन्यकर्मी को कुछ होने पर उनका उपचार किया जा सके। लेह में एक सेना का एक बहुत बड़ा अस्पताल है, जिसमें जवानों को उस मौसम में रहने के लिए खुद की देखभाल, साफ-सफाई सहित कई अन्य बातों की ट्रेनिंग दी जाती है। किसी भी यूनिट को लद्दाख भेजने से 6 महीने पहले ही तैयारी शुरू कर दी जाती है ताकि जवानों को इस तरह से तैयार किया जाए कि वे सुदृढ़ हो सके," शर्मा ने Sputnik भारत से कहा।
"कुछ ऐसे ही उपकरण के साथ भी कई तरह के उपाय किए जाते हैं। दुर्गम मौसम की वजह से उपकरणों की भी क्षमता वहां पर कम हो जाती है, इसकी देखभाल भी सामान्य सेना की तरह की जाती है। इसी को ध्यान में रखकर वहां पर एक हीटिंग प्रणाली भी उपलब्ध कराई जाती है, जिससे उन्हें निर्धारित तापमान में रखा जा सके," शर्मा ने कहा।
"लद्दाख में यह पहली बार नहीं है, पहले भी कारगिल युद्ध लड़ा गया था और हम 1984 से सियाचिन में हैं, जो भी लद्दाख क्षेत्र है। पूर्वी लद्दाख का क्षेत्र पिछले 3 साल से ज्यादा समय से सतर्कता में है। पश्चिमी लद्दाख में कारगिल 5 से 6 हजार मीटर की ऊंचाई पर है, और सियाचिन ग्लेशियर भी 22 हजार फीट की ऊंचाई पर है, यहाँ भी हमारी प्रणाली पहले से तैयार है," शर्मा ने Sputnik भारत से कहा।