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लद्दाख के प्रतिकूल मौसम में भी भारतीय सेना की तैयारी में कोई कमी नहीं: रक्षा विशेषज्ञ

© AFP 2023 TAUSEEF MUSTAFAArmy soldiers guard near the Zojila tunnel under construction which connects Srinagar to the union territory of Ladakh, at Baltal, some 93 km northeast of Srinagar, on September 28, 2021.
Army soldiers guard near the Zojila tunnel under construction which connects Srinagar to the union territory of Ladakh, at Baltal, some 93 km northeast of Srinagar, on September 28, 2021. - Sputnik भारत, 1920, 21.10.2023
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लद्दाख के बर्फीले ऊंचाई वाले रेगिस्तान में, जहां तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे है, प्रकृति भारतीय सैनिकों की सबसे बड़ी शत्रु है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लगभग 14,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई पर नियुक्त सैनिकों के लिए रहना एक कठिन चुनौती है।
अक्टूबर और अप्रैल के मध्य, एलएसी पर सर्दियों का तापमान औसतन शून्य से -20 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। लेकिन प्रायः, वे शून्य से -40 डिग्री सेल्सियस तक नीचे गिर जाते हैं।

इसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में सैनिकों का जमावड़ा अत्यंत विषम है। साथ ही, चूंकि ऑक्सीजन की आपूर्ति सीमित है, इसलिए सैनिक का भार और हथियार ले जाने की क्षमता अत्यंत कम हो जाती है।

"आजकल लद्दाख में सेना और उपकरण की स्थायी रूप से नियुक्ति हैं। यह मात्र लद्दाख में ही नहीं है, बल्कि पूरे सीमावर्ती क्षेत्र के लिए एक प्रणाली बनाई गई है। वहां से कोई भी उपकरण वापस नहीं जाता है, जिसकी देखभाल की जाए या सीमा का प्रबंधन किया जाए, बल्कि यह एक स्थायी स्थिति है। हालांकि समय के साथ साथ कुछ नई सामग्री और उपकरण भेजे जाते हैं, जो समय-समय पर नवाचारित होते हैं और जिनकी नियुक्ति एक दैनिक क्रिया स्वरूप में होती रहती हैं," रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. राकेश शर्मा ने Sputnik भारत को बताया।

साथ ही शर्मा ने रेखांकित किया, "लद्दाख का मौसम अत्यंत असहज और कठिन है। वहां का तापमान (-) 40 डिग्री तक चला जाता है और हवाएं अत्यंत तीव्रता से चलती है। ऑक्सीजन की कमी के कारण हाइपोथर्मिया, चिल ब्लेन्स, फ्रॉस्टबाइट, सेरेब्रोवास्कुलर दुर्घटनाएं, कॉर्टिकल वेनस थ्रोम्बोसिस, हार्ट अटैक, पल्मोनरी हाइपरटेंशन इत्यादि जैसे बीमारियां हो जाती है। यह जानते हुए भी की इस प्रकार की बीमारियां उनको हो सकती है, सैनिक ली पूरी जीव प्रणाली को जांचा जाता है और एक विशिष्ठ ढ़ंग से आगे बढ़ा जाता है, साथ ही जगह-जगह पर लोगों को अनुकूलरूप से सहज किया जाता है।"
वस्तुतः पारंपरिक स्थानों के विपरीत, सैनिकों को उच्च ऊंचाई पर मौसम की स्थिति से भी जूझना पड़ता है। नियुक्त होने से पहले सैनिकों को उच्च ऊंचाई वाली परिस्थितियों में अनुकूलित प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है।

"आवश्यकता के अनुसार अस्पताल बनाए गए हैं, ताकि किसी सैन्यकर्मी को कुछ होने पर उनका उपचार किया जा सके। लेह में एक सेना का एक बहुत बड़ा अस्पताल है, जिसमें जवानों को उस मौसम में रहने के लिए खुद की देखभाल, साफ-सफाई सहित कई अन्य बातों की ट्रेनिंग दी जाती है। किसी भी यूनिट को लद्दाख भेजने से 6 महीने पहले ही तैयारी शुरू कर दी जाती है ताकि जवानों को इस तरह से तैयार किया जाए कि वे सुदृढ़ हो सके," शर्मा ने Sputnik भारत से कहा।

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दरअसल संकटों को और बढ़ाने वाला खतरनाक ठंढी हवा तापमान को और कम कर देता है और शीतदंश के संकटों को बढ़ा देता है। शीतदंश सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है, क्योंकि इसके कारण अंग-भंग तक हो सकता है। यदि कोई सैनिक कुछ सेकंड के लिए भी अपने नंगे हाथों से राइफल के ट्रिगर या बैरल को छूता है, तो इसका गंभीर प्रभाव हो सकता है, जिससे सैनिक की त्वचा का एक हिस्सा धातु की सतह पर चिपक सकता है।

"कुछ ऐसे ही उपकरण के साथ भी कई तरह के उपाय किए जाते हैं। दुर्गम मौसम की वजह से उपकरणों की भी क्षमता वहां पर कम हो जाती है, इसकी देखभाल भी सामान्य सेना की तरह की जाती है। इसी को ध्यान में रखकर वहां पर एक हीटिंग प्रणाली भी उपलब्ध कराई जाती है, जिससे उन्हें निर्धारित तापमान में रखा जा सके," शर्मा ने कहा।

इसके अतिरिक्त , कम तापमान कुछ सैन्य उपकरणों को बेकार कर देता है, क्योंकि वे जम जाते हैं और हथियार बैरल फटने लगते हैं। इस प्रकार, सैनिकों को अपने हथियारों को लगातार चिकनाई और रखरखाव करना होता है।

"लद्दाख में यह पहली बार नहीं है, पहले भी कारगिल युद्ध लड़ा गया था और हम 1984 से सियाचिन में हैं, जो भी लद्दाख क्षेत्र है। पूर्वी लद्दाख का क्षेत्र पिछले 3 साल से ज्यादा समय से सतर्कता में है। पश्चिमी लद्दाख में कारगिल 5 से 6 हजार मीटर की ऊंचाई पर है, और सियाचिन ग्लेशियर भी 22 हजार फीट की ऊंचाई पर है, यहाँ भी हमारी प्रणाली पहले से तैयार है," शर्मा ने Sputnik भारत से कहा।

"हमारी सेना के पास वहां रहने का अनुभव दशकों से या रहा है, इसीलिए हमारे लिए वहां रहना कोई असामान्य कार्यवाही नहीं है। ये सही है कि पूर्वी लद्दाख में तापमान बहुत कम रहता है, इससे बचने के लिए जवानों के खानपान को एक पेशेवर तरीके से तैयार किया गया है। जवानों के वहां रहने से लेकर, पोस्ट बदलने या उन्हें वहां से निकालने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार किया गया है, और उसके अंतर्गत पूरा काम किया जाता है," उन्होंने टिप्पणी की।
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