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कहां है मिनिकॉय द्वीप समूह जिसमें प्रस्तावित सैन्य अड्डा भारत के लिए होगा निर्णायक?

अगर अभी की बात करें तो भारतीय नौ सेना की एक छोटी टुकड़ी भी मिनिकॉय द्वीप समूह के पास है। Sputnik India आज आपको मिनिकॉय द्वीप से जुड़ी बारीकियों से रूबरू कराने जा रहा है।
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हाल ही में मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय वायु सेना ने केरल राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 425 किलोमीटर दूर मिनिकॉय द्वीप समूह में एक फॉरवर्ड फाइटर एयरबेस स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है।
यह संचार के समुद्री मार्गों (SLOC) की सुरक्षा के साथ-साथ उसी रणनीति की हिस्सा है जिसमें तत्कालीन जनरल बिपिन रावत चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के समय बंगाल की खाड़ी में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सभी वायु और नौसैनिक अड्डों को अपग्रेड करना शामिल था।

कहां है मिनिकॉय द्वीप?

मिनिकॉय द्वीप लक्षद्वीप का सबसे दक्षिणी द्वीप है, जो कोच्चि के दक्षिण-पश्चिम में 398 किमी की दूरी पर स्थित है, जिसका क्षेत्रफल 4.80 वर्ग किमी है।

मिनिकॉय द्वीप रणनीतिक जरूरत क्यों है?

सुहेली पार द्वीप और मिनिकॉय के बीच 200 किलोमीटर चौड़ा नौ-डिग्री चैनल यूरोप, मध्य-पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और उत्तरी एशिया के बीच ट्रिलियन डॉलर के व्यापारी शिपिंग की मेजबानी करता है और यह श्रीलंका और दक्षिण हिंद महासागर सहित मलक्का जलडमरूस्थल मध्य की ओर जाने वाले वाहकों के लिए प्रमुख SLOC है।
यहां तक कि स्वेज नहर और फारस की खाड़ी से इंडोनेशिया के सुंडा, लोम्बोक या ओम्बी-वेटर जलडमरूमध्य की ओर जाने वाले यातायात को भी भारत के मिनिकॉय द्वीप समूह और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास से गुजरना पड़ता है।
यह नौ-डिग्री और दस-डिग्री चैनल का पूरक है, जो ग्रेट अंडमान को निकोबार द्वीप समूह से अलग करता है, और मलक्का जलडमरूमध्य की ओर जाता है।

वायु सेना के प्रस्ताव के बाद कैसे बदलाव होंगे?

इस क्षेत्र में एयरफील्ड के विकास का प्रस्ताव सबसे पहले भारतीय तटरक्षक बल ने दिया था। वर्तमान प्रस्ताव के हिसाब से भारतीय वायु सेना (IAF) मिनिकॉय के हवाई क्षेत्र से संचालन का नेतृत्व करेगी। एक बार चालू होने के बाद, हवाई अड्डा क्षेत्रीय पर्यटन को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ रक्षा बलों की निगरानी क्षमताओं को बढ़ाएगा, जैसा कि सरकार की योजनाओं में बताया गया है।
मिनिकॉय और कैंपबेल खाड़ी में हवाई अड्डे का विस्तार भारत को 7500 किमी लंबी भारतीय तटरेखा को बाहरी खतरे से बचाने के साथ साथ अरब सागर और हिंद महासागर के बारे में बेहतर समुद्री डोमेन जागरूकता प्रदान करते हैं। इसके बाद भारतीय सशस्त्र बलों को हिंद महासागर क्षेत्र में अधिक पहुंच होगी।
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