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पश्चिमी देश ज्यादा कीमत वसूलने के इरादे से भारत को देरी से रक्षा आपूर्ति करते हैं: विशेषज्ञ

भारत अर्जुन मार्क 1ए टैंकों के लिए एक स्वदेशी इंजन के विकास पर विचार कर रहा है, क्योंकि इन टैंकों के लिए महत्वपूर्ण जर्मन इंजनों की डिलीवरी में लगभग चार साल की देरी होने की आशंका है।
Sputnik
विकास एजेंसियों के पास पहले से ही मौजूद कुछ इंजनों को रक्षा मंत्रालय द्वारा 2021 में दिए गए 118-टैंक ऑर्डर के लिए शुरुआती टैंकों के निर्माण के लिए नियोजित किया जाएगा, जिसकी लागत 7,523 करोड़ रुपये होगी।
भारतीय रक्षा विशेषज्ञ कमर आग़ा मानते हैं कि पश्चिमी कंपनियां ज़्यादा कीमत वसूलने के लिए देर करती हैं।

कमर आग़ा ने कहा, "भारत के रक्षा उत्पादन में DRDO एवं अन्य निजी क्षेत्र की कंपनियाँ भी शामिल हैं। जिससे मुझे लगता है कि भारत के पास तकनीक और सामग्री उपलब्ध हैं जिसे वे खुद बेहतर बना सकते हैं। साथ ही ये तकनीक यूरोप तथा पश्चिमी देशों के अलावा भी कई जगहों पर मौजूद हैं। पश्चिमी देश हाई-टेक क्षेत्रों में देरी करते हैं ताकि वे अपने मूल्यों में संशोधन करके महंगे करके बेच सके। इसलिए, मुझे लगता है कि इसे यहीं बनाना भारत के लिए अच्छा कदम है।"

अत्याधुनिक एमबीटी एमके-1ए अर्जुन टैंक का एक नया संस्करण है जिसे अग्नि शक्ति, गतिशीलता और उत्तरजीविता बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
जर्मनी से इंजनों की आपूर्ति में देरी ने लाइट टैंक विकसित करने की भारत की योजना को भी प्रभावित किया है, जिसने लार्सन एंड टुब्रो और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन को अमेरिकी कमिंस इंजन चुनने के लिए प्रेरित किया है।
जब Sputnik India ने आग़ा से पूछा कि वे कौन से देश हैं जो जानबूझ कर रक्षा उपकरण की वितरण में देरी करते हैं तब उन्होंने कहा, "निश्चित तौर पर पश्चिमी देश हैं, जिनमें जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस जैसे देश शामिल हैं। हर किसी की यही शैली, कार्यप्रणाली, बातचीत को लंबे समय तक खींचना, मूल्य निर्धारण पर बहुत सारी समस्याएं पैदा करना है। उनके उत्पाद भी महंगे होते हैं।"
रक्षा उपकरणों के आयात और निर्यात के लिए रूस की एकमात्र राज्य मध्यस्थ रोसोबोरोनएक्सपोर्ट ने मेक इन इंडिया पहल के तहत हल्के टैंक और पैदल सेना से लड़ने वाले वाहन के लिए भारतीय भागीदारों के साथ संयुक्त रूप से निविदाओं में भाग लेने की इच्छा जताई है।

आग़ा ने बताया, "उनसे बेहतर रूसी उत्पाद होते हैं, जो कम दामों के साथ साथ मजबूत भी होते हैं, जिसकी लाइफ अधिक होती है। पश्चिमी देश बहुत सारी तकनीक स्थानांतरित करने के लिए तैयार नहीं होते और न भारत में बनाने के लिए तैयार होते। लागत की भी समस्या बहुत होती है और उसी वजह से आज राफेल की कीमत बहुत अधिक बढ़ गई है।"

रूस ने भारत के साथ टी-14आर्मटा टैंक की तकनीक साझा करने में रुचि दिखाई है।

आग़ा ने रेखांकित किया, "रूस ने यूक्रेन संघर्ष के दौरान जिस आसानी से जर्मन टैंक को निशाना बनाकर नष्ट किया, वहीं उनके टैंकों के मारक क्षमता और मजबूती की पोल खुल गई। साथ ही यूक्रेन संघर्ष के दौरान रूस के खिलाफ जितने भी पश्चिमी हथियारों का उपयोग हुआ, वो अधिकतर विफल रहे यह भी उनके रक्षा उपकरणों में विशिष्टता खोने का एक मुख्य कारण बनता जा रहा है। भारत अब आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है, और अगर हमें किसी चीज की जरूरत पड़ती है तो हम रूस से ले सकते हैं। यह नीति अच्छी रहेगी क्योंकि रूस हमेशा एक समय-परीक्षित मित्र रहा है।"

कमर आग़ा ने बताया, "पश्चिमी देश सोचते हैं कि उनके बिना संसार में कोई काम नहीं हो सकता, यह उनका एक भ्रम है। उनमें प्रौद्योगिकी और इस सब पर श्रेष्ठता की भावना है। लेकिन अब टेक्नोलॉजी पर उनका पहले वाला एकाधिकार नहीं रह गया है, कई देशों ने प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं, भारत उनमें से एक है।"
उसी समय, सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर अरुण सहगल ने Sputnik India को सूचित किया कि कई देश अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र व्यापार विनियम (आईटीएआर) का पालन करते हैं, जो प्रतिबंधों से जुड़े हैं, जिससे कभी-कभी देरी होती है। ऐसा नहीं है कि ये देश भारत को हथियार देने के इच्छुक नहीं हैं उन्हे अपने लिए सबसे लाभप्रद विकल्प चुनने की स्वतंत्रता है।
उन्होंने साथ ही कहा, "किसी भी देश को एक देश पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। भारत का यह फैसला बहुत अच्छा है जो दूसरों के ऊपर निर्भरता छोड़ कर खुद बनाएगा। भारत के इस फैसले से दूसरे देश शायद आगे कभी ऐसी गलती न करें।"
भारत के मौजूदा टैंक बेड़े का अधिकांश हिस्सा मुख्य रूप से रूसी निर्मित टी-72 और टी-90 टैंकों से बना है।
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