कमर आग़ा ने कहा, "भारत के रक्षा उत्पादन में DRDO एवं अन्य निजी क्षेत्र की कंपनियाँ भी शामिल हैं। जिससे मुझे लगता है कि भारत के पास तकनीक और सामग्री उपलब्ध हैं जिसे वे खुद बेहतर बना सकते हैं। साथ ही ये तकनीक यूरोप तथा पश्चिमी देशों के अलावा भी कई जगहों पर मौजूद हैं। पश्चिमी देश हाई-टेक क्षेत्रों में देरी करते हैं ताकि वे अपने मूल्यों में संशोधन करके महंगे करके बेच सके। इसलिए, मुझे लगता है कि इसे यहीं बनाना भारत के लिए अच्छा कदम है।"
आग़ा ने बताया, "उनसे बेहतर रूसी उत्पाद होते हैं, जो कम दामों के साथ साथ मजबूत भी होते हैं, जिसकी लाइफ अधिक होती है। पश्चिमी देश बहुत सारी तकनीक स्थानांतरित करने के लिए तैयार नहीं होते और न भारत में बनाने के लिए तैयार होते। लागत की भी समस्या बहुत होती है और उसी वजह से आज राफेल की कीमत बहुत अधिक बढ़ गई है।"
आग़ा ने रेखांकित किया, "रूस ने यूक्रेन संघर्ष के दौरान जिस आसानी से जर्मन टैंक को निशाना बनाकर नष्ट किया, वहीं उनके टैंकों के मारक क्षमता और मजबूती की पोल खुल गई। साथ ही यूक्रेन संघर्ष के दौरान रूस के खिलाफ जितने भी पश्चिमी हथियारों का उपयोग हुआ, वो अधिकतर विफल रहे यह भी उनके रक्षा उपकरणों में विशिष्टता खोने का एक मुख्य कारण बनता जा रहा है। भारत अब आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है, और अगर हमें किसी चीज की जरूरत पड़ती है तो हम रूस से ले सकते हैं। यह नीति अच्छी रहेगी क्योंकि रूस हमेशा एक समय-परीक्षित मित्र रहा है।"