डीआरडीओ के पूर्व वैज्ञानिक रवि गुप्ता ने Sputnik India को बताया, "निजी और साथ ही सरकारी क्षेत्र के उद्योग के साथ डीआरडीओ का जुड़ाव लगभग 1960 के दशक से है। यह नया नहीं है। दुर्भाग्य से, साल 2001 तक सरकारी नीतियों ने निजी उद्योग द्वारा संपूर्ण सिस्टम का निर्माण करने की अनुमति नहीं दी। इसलिए 2001 तक निजी उद्योग के साथ डीआरडीओ का सहयोग घटक स्तरों और उप-प्रणालियों के निर्माण तक ही सीमित था। वाजपेयी सरकार के दौरान नीति में ढील दी गई और निजी क्षेत्र को संपूर्ण प्रणालियों के निर्माण में भाग लेने की अनुमति दी गई। जिसके बाद पिनाका रॉकेट लॉन्च, मल्टी-बैरल रॉकेट सिस्टम निजी क्षेत्र द्वारा निर्मित होने वाली पहली प्रमुख प्रणाली बन गई।"
गुप्ता ने कहा, "इसलिए उत्पाद के पूरे चक्र के लिए, चाहे निजी क्षेत्र या सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग हों, वे प्रणाली और आवश्यक गुणवत्ता के लिए डीआरडीओ के मार्गदर्शन पर निर्भर थे। अब निजी क्षेत्र के उद्योगों को समर्थन देने पर जोर दिया जा रहा है। सरकार की नीतियाँ अब काफी बदल गई हैं। सरकारी क्षेत्र की सुविधाएं, परीक्षण सुविधाएं और परीक्षण रेंज को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है और डीआरडीओ सरकार द्वारा निर्धारित कुछ नीतियों के आधार पर निजी क्षेत्र के उद्योग को बहुत ही मामूली लागत पर प्रौद्योगिकियों को स्थानांतरित करके अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा है।"
गुप्ता ने Sputnik India को बताया, "बैक-एंड उद्योग छोटे घटक, उपप्रणाली निर्माण, परीक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण और सॉफ्टवेयर के विकास में शामिल होंगे, जिससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बहुत ऊंचे स्तर पर विकसित होने जा रहा है। इसलिए, इससे भरपूर लाभ मिलेगा और उम्मीद है कि ऐसी प्रवृत्ति जारी रहेगी और अधिक से अधिक निजी क्षेत्र के उद्योग रक्षा विनिर्माण में शामिल होंगे। लेकिन अंतिम परीक्षा तब होगी जब ये उद्योग रक्षा अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना शुरू करेंगे।"
गुप्ता ने बताया, "बहुत कम सरकारी कंपनियाँ शायद चीन और रूस में हैं, लेकिन चीन और रूस में भी निजी क्षेत्र के उद्योग रक्षा उद्योग में शामिल हैं। लेकिन, तथ्य यह है कि जब तक हमारे अपने इंजीनियरिंग उद्योग रक्षा अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना शुरू नहीं करेंगे, तब तक वे इस स्तर तक विकसित नहीं होंगे।"