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सशस्त्र बलों का निरंतर आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए: सैन्य अनुभवी

4 जून को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सात चरणों में बटी चुनाव प्रक्रिया को मतगणना के साथ खत्म किया गया। इन चुनावों में पीएम नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार जीत हांसिल की और वह देश में अगली सरकार बनाने के लिए तैयार हैं।
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पीएम मोदी के पिछले दो कार्यकालों में रक्षा क्षेत्र को लेकर बहुत तेजी से काम किया गया, इसमें सेना को आत्मनिर्भर बनाना, निजी क्षेत्र को रक्षा विनिर्माण में शामिल करना शामिल था, और अभी भी उम्मीद है कि तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार यह काम करना जारी रखेगी।
सेना के लिए एक और महत्वपूर्ण आवश्यकता भारतीय रक्षा क्षेत्र को जल्द से जल्द स्थानीय उत्पादन क्षमता पर आधारित खरीद प्रणाली बनाना है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार भविष्य के अधिग्रहणों के मार्गदर्शन के लिए रक्षा विनिर्माण में "आत्मनिर्भरता" का उपयोग करके मेक इन इंडिया कार्यक्रम की सफलता को आगे बढ़ाना चाहेगी। इसका एक संकेतक वह नियमितता है जिसके द्वारा रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) से स्वदेशी रूप से विकसित उन्नत मिसाइल सिस्टम मिले हैं।
हालांकि हथियार निर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए ये शुरुआती दिन हैं, और भारत को अभी भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रमुख हथियार प्लेटफार्मों की खरीदारी करने की आवश्यकता है, इसमें पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू जेट, लड़ाकू ड्रोन और ड्रोन विरोधी प्रणाली, वायु रक्षा प्रणाली, या तोपें की खरीदारी की आवश्यकता होगी। वहीं स्वदेशी आधारित आधुनिकीकरण प्रयास में भारतीय नौसेना, थल सेना और वायुसेना से कहीं आगे निकल रही है, जिसमें देश के शिपयार्ड वर्तमान में विभिन्न प्रकार के 40 से अधिक जहाजों का निर्माण कर रहे हैं।
Sputnik India ने देश के जाने माने रक्षा विशेषज्ञ और भारतीय सेना से मेजर जनरल के पद से सेवानिवृत्त पी. के. सहगल से जानने की कोशिश की कि रक्षा क्षेत्र में आने वाली सरकार को क्या काम करने की उम्मीद है।

रक्षा क्षेत्र में एआई, ड्रोन और साइबर क्षमता को बढ़ावा

सबसे पहले उनसे नई सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्र में एआई, ड्रोन और साइबर क्षमताओं जैसी उन्नत तकनीकों को एकीकृत करने की योजना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि चाहे कोई भी सरकार हो, चाहे वह पुरानी सरकार हो या नई सरकार, राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि रहेगी। सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण एक ऐसी चीज है जो निरंतर चलता रहता है।

"रक्षा क्षेत्र को उतना धन दिया जाएगा, जिससे कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ड्रोन, साइबर सुरक्षा, सूचना युद्ध, साइबर स्पेस आदि को रक्षा सेवाओं में एकीकृत किया जा सके," मेजर जनरल सहगल ने कहा।

उन्होंने आगे बताया कि "वर्तमान सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि निजी क्षेत्र, लघु उद्योग, मध्यम उद्योग, स्टार्टअप, आईटी, सभी एक साथ मिलकर बजटीय सीमाओं के भीतर रक्षा के संबंध में देश की कठिनाइयों को कम करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें।"

नई सरकार के सामने रक्षा बजट बढ़ाने की चुनौती

रक्षा विशेषज्ञ ने आने वाली सरकार द्वारा रक्षा आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करते हुए बजट की बाधाओं को दूर करने के बारे में पूछने पर बताया कि राष्ट्र की सुरक्षा किसी भी सरकार के लिए सर्वोपरि होगी, कोई भी सरकार राष्ट्र की सुरक्षा को कभी कम महत्व नहीं दे सकती।

"इससे पहले, रक्षा बजट लगभग 1.5 से 1.7 या लगभग 2% के आसपास रहा है। और बहुत अच्छी स्थिति में, बजट लगभग 2.5 तक बढ़ सकता है और इससे अधिक कुछ नहीं, क्योंकि देश में गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन, बढ़ती हुई जीवन-यापन लागत की उम्मीद, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की उम्मीद को छोड़ा नहीं जा सकता। इसलिए, इन सभी को ध्यान में रखते हुए, सरकार रक्षा क्षेत्र को उतना ही देगी जितना वह वहन कर सकती है," उन्होंने कहा।

रक्षा क्षेत्र में अन्य देशों के साथ नई सरकार के संबंध

भारत की रक्षा चुनौतियों का समाधान करने में रूस जैसे सबसे पुराने मित्रों के साथ सहयोग की भूमिका पर पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि राष्ट्रों के हित सर्वोपरि हैं।

"सहयोग केवल उन देशों के साथ होगा जो 100% प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करने के लिए तैयार हैं। जो देश हमारा रक्षा उद्योग बनाने में मदद करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि शर्तें राष्ट्र को स्वीकार्य हैं,और कोई छिपी हुई शर्तें नहीं होनी चाहिए, हालांकि वे दिन चले गए जब छिपी हुई शर्तें भारी पड़ती थीं। और हम वर्तमान में भी 100% प्रौद्योगिकी हस्तांतरण चाहते हैं। रूस जैसे पुराने दोस्त भी हमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण दे रहे हैं," रक्षा विशेषज्ञ सहगल ने जोर देकर कहा।

आगे उन्होंने सरकार द्वारा रक्षा उत्पादों के आयात और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर बात करते हुए बताया कि वर्तमान सरकार के साथ-साथ पिछली सरकार और भविष्य की सरकारें यह सुनिश्चित करती हैं कि इसमें किसी भी तरह की कोई बाधा न हो।
"हम उस देश के साथ सहयोग करेंगे जो हमारी आवश्यकताओं को सबसे सस्ती कीमत पर पूरी तरह से पूरा करता है," मेजर जनरल पी के सहगल ने कहा।
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