18 सितंबर को सेना ने निर्माताओं से ऐसे ड्रोन के बारे में प्रस्ताव देने को कहा गया है जिनसे मैदान में इंजीनियर्स का काम आसान हो जाएगा। ये ड्रोन इंजीनियर्स को बहुत कम समय में पुल बनाने या ध्वस्त करने, दुश्मन की बारूदी सुरंगों के बीच से रास्ता तलाशने, टैंकों को रोकने के लिए खाई तैयार करने या हमले का रास्ता बनाने के लिए ज़रूरी जानकारियां मुहैय्या कराएंगे।
सेना ने अपनी ज़रूरत के बारे में बताया है कि ये ड्रोन 12000 फीट की ऊंचाई तक से उड़ाए जा सकें और टेक-ऑफ करने के बाद 3000 फीट की ऊंचाई तक जा सकें। दो घंटे तक उड़ सकें और 10 किमी तक जा सकें। साफ़ है कि भारतीय सेना इनका इस्तेमाल खास तौर पर पहाड़ों में करना चाहती है जहां पुल, सड़कों के निर्माण के लिए ज्यादा समय लगता है।
इन ड्रोन में रात और दिन दोनों में ही रिकॉर्डिंग करने वाले वीडियो कैमरे के साथ-साथ थर्मल सेंसर लगे हों। इनका वज़न 25 किग्रा से अधिक न हो और इन्हें तीन सैनिकों के क्रू से ऑपरेट किया जा सके। इन्हें पीठ पर लाद कर ले जाया जा सके और 30 मिनट में काम करने के लिए तैयार किया जा सके।
रक्षा मंत्रालय ने स्वदेशी ड्रोन की डिज़ाइन और उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। भारतीय सेना ने दुर्गम पहाड़ी इलाक़ों में रसद, गोलाबारूद और दवाईयाँ पहुंचाने के लिए परंपरागत तरीक़ों के बजाए लॉजिस्टिक ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया है। हमला करने, चौकसी करने, टोह लेने जैसी कई सैनिक कार्रवाइयों में अब भारतीय सेना ड्रोन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रही है।