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क्लाउड सीडिंग की मदद से दिल्ली NCR में कम होगा प्रदूषण, क्या है क्लाउड सीडिंग?

© AFP 2023 ARUN SANKARCommuters make their way along a road amid heavy smoggy conditions in New Delhi on November 5, 2023. Authorities in the smog-ridden Indian capital New Delhi on November 5 extended an emergency schools closure by a week, with no signs of improvement in the megacity's choking levels of pollution.
Commuters make their way along a road amid heavy smoggy conditions in New Delhi on November 5, 2023. Authorities in the smog-ridden Indian capital New Delhi on November 5 extended an emergency schools closure by a week, with no signs of improvement in the megacity's choking levels of pollution.  - Sputnik भारत, 1920, 07.11.2023
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल के नेतृत्व में कुछ महीने पहले क्लाउड-सीडिंग के माध्यम से कृत्रिम बारिश करने में सफलता हासिल की थी।
भारत की राजधानी दिल्ली की हवा की गुणवत्ता का स्तर दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है, इसे देखते हुए दिल्ली सरकार के कुछ अधिकारियों ने क्लाउड सीडिंग के लिए देश के सर्वोच्च संस्थानों में से एक IIT कानपुर से संपर्क किया है।
IIT कानपुर द्वारा जारी किए गए बयान में प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि IIT कानपुर के पास अपना खुद का विमान है जो वर्तमान में क्लाउड सीडिंग के लिए जरूरी फ्लेयर्स के साथ तैयार है और इसे देश के नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) से मंजूरी भी मिल गई है, जिसके बाद वह कहीं भी क्लाउड सीडिंग कर सकते हैं।

"हम भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के साथ मिलकर पिछले 2 महीने से योजना बना रहे हैं कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में क्लाउड सीडिंग के माध्यम से हम प्रदूषण को कैसे और कब नियंत्रित करें? CII कार्यालय बहुत सक्रिय है और दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार दोनों के साथ समन्वय कर रहा है, कल हमें दिल्ली सरकार से कुछ फोन कॉल आए हैं," प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल ने बयान में कहा।

प्रदूषण का स्तर राजधानी और उससे लगे आसपास के इलाकों में बहुत गंभीर श्रेणी में है, दिवाली के बाद इसके स्तर में आगे और बढ़ोतरी देखी जा सकती है। इससे निपटने के बारे में प्रोफेसर ने आगे बताया कि क्लाउड सीडिंग के जरिए बारिश करा कर प्रदूषण कम करने का तरीका स्थायी नहीं है।
"जब क्लाउड सीडिंग के माध्यम से बारिश होती है, तो धूल के कण पानी के साथ बह जाते हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त हो जाता है, लेकिन जब तक हम प्रदूषण के स्रोतों पर कार्रवाई नहीं करेंगे, प्रदूषण फिर से होगा। अतः क्लाउड सीडिंग के माध्यम से प्रदूषण पर नियंत्रण अस्थायी होता है जो एक सप्ताह या अधिकतम दो सप्ताह तक चलता है," IIT कानपुर के प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा।
Sputnik आपको बताएगा कि क्या है यह क्लाउड सीडिंग तकनीक जिसके जरिए कृत्रिम बारिश कारवाई जाती है।

क्या है क्लाउड सीडिंग ?

इस तकनीक में बादलों के घनत्व को बढ़ा कर वर्षा की संभावना को बढ़ाया जाता है। इसमें एक हवाई जहाज की मदद से बादलों के भीतर विभिन्न सिल्वर रासायनिक पदार्थों डाला जाता है, जिनमें आयोडाइड, सूखी बर्फ, सेंधा नमक और यहां तक कि सामान्य नमक का मिश्रण शामिल होता है।
इसे तीन मुख्य तरीकों से किया जा सकता है।

स्टेटिक क्लाउड सीडिंग

इस विधि में बर्फ के न्यूक्लिआई जैसे सिल्वर आयोडाइड या सूखी बर्फ को उन ठंडे बादलों में डाला जाता है जिनमें ठंडी तरल पानी की बूंदें होती हैं। बर्फ के न्यूक्लिआई बर्फ के क्रिस्टल या बर्फ के टुकड़ों के निर्माण को गति देने के बाद तरल बूंदों के साथ बढ़ाकर वर्षा के रूप में गिर जाते हैं।

गतिशील क्लाउड सीडिंग

क्लाउड सीडिंग की इस विधि में ऊर्ध्वाधर वायु धाराओं को बढ़ावा देकर बारिश प्रेरित करने की एक विधि है। इस प्रक्रिया को स्टैटिक क्लाउड सीडिंग की तुलना में अधिक जटिल माना जाता है क्योंकि यह ठीक से काम करने वाली घटनाओं के अनुक्रम पर निर्भर करता है।
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हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग

इस विधि में गर्म बादलों के आधार में फ्लेयर्स या विस्फोटकों के माध्यम से हीड्रोस्कोपिक सामग्रियों के बारीक कणों से किया जाता है, जिनमें नमक का छिड़काव करना शामिल है। कण बादल संघनन न्यूक्लिआई के रूप में कार्य कर बादल की बूंदों की संख्या और आकार को बढ़ा सकते हैं, जो बादलों की परिवर्तनशीलता और स्थिरता को बढ़ा सकते हैं।

कितनी है क्लाउड सीडिंग की लागत?

प्रोफेसर ने इसके बारे में आगे इसके खर्च के बारे में बताते हुए कहा कि यह थोड़ा महंगा जरूर है लेकिन इसके इस्तेमाल से प्रदूषण से कुछ राहत मिल सकती है।

"विमान उड़ता है जिसके लिए ईंधन का इस्तेमाल होता है। विमान का रखरखाव भी करना होता है और उसमें लगे फ्लेयर्स का भी खर्च होता है। इसलिए यह थोड़ा महंगा जरूर है लेकिन जहां भी बादल हों वहां क्लाउड सीडिंग करने से कुछ समय के लिए प्रदूषण कम जरूर हो जाता है," IIT कानपुर के प्रोफेसर मणींद्र ने कहा।

कुल मिलाकर, विशेष उपकरणों से सुसज्जित विमान के साथ ऑपरेशन के दौरान हर घंटे पर करीब 3 से 5 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है।
इसी साल जून के महीने में प्रोफेसर के नेतृत्व में बायोइंजीनियरिंग, प्रबंधन एकीकरण और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग सहित विभिन्न विशेषज्ञताओं के शोधकर्ता की टीम ने मिलकर कॉलेज परिसर में एक सीमित क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग के माध्यम से कृत्रिम बारिश में सफलता हासिल की थी।
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