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भारत के पहले एथलेटिक्स सुपरस्टार मिल्खा सिंह कौन थे?

© AP Photo / Tsering TopgyalFormer Indian athlete Milkha Singh waves to the participants during the Delhi Half Marathon in New Delhi, India.
Former Indian athlete Milkha Singh waves to the participants during the Delhi Half Marathon in New Delhi, India.  - Sputnik भारत, 1920, 20.11.2023
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भारत के पहले ट्रैक और फील्ड सुपरस्टार मिल्खा सिंह का नाम देश में बहुत सम्मान से लिया जाता है। वे अपने दृढ़ निश्चय, कठिन परिश्रम और जुनून के लिए जाने जाते थे, उनके जन्मदिन के मौके पर Sputnik India उनके बारें में बताने जा रहा है।
मिल्खा सिंह देश के पहले एथलीट थे, जिन्होंने 440 मीटर यार्ड दौड़ में भारत के लिए 1958 के ब्रिटिश साम्राज्य और राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। यह स्वर्ण भारत के खेल इतिहास में एक यादगार पल था और इस जीत की खुशी में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मिल्खा के अनुरोध के बाद देश भर में एक दिन के राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा की थी।
वे लंबे समय तक भारत के लिए राष्ट्रमंडल खेलों की ट्रैक एण्ड फील्ड प्रतिस्पर्धा में एकलौते स्वर्ण पदक विजेता बने रहे। उनका रिकॉर्ड 52 साल तक बरकरार रहा जिसे आखिरकार कृष्णा पूनिया ने भारत की राजधानी नई दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान डिस्कस थ्रो में तोड़ा था।
फरहान अख्तर अभिनीत फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' नाम की फिल्म ने मिल्खा सिंह को अमर कर दिया। जानें भारत के सबसे बड़े एथलीटों में से एक और फ्लाइंग सिख के नाम से जाने जाने वाले मिल्खा सिंह से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में।

कौन थे मिल्खा सिंह?

मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को तत्कालीन भारत के गोविंदपुरा (अभी पाकिस्तान) के एक सिख परिवार में हुआ था। 14 भाई बहनों में से एक मिल्खा सिंह ने सेना में जाने से पहले कई कठिनाइयों का सामना किया था। उन्होंने 1947 में हुए विभाजन से पहले हुए दंगों में अपने माता-पिता और कुछ अन्य भाई-बहनों के नरसंहार को देखा था।

1947 में हुए विभाजन में अनाथ होने के बाद मिल्खा सिंह पाकिस्तान से भारत आ गए, जिसके बाद वे 1951 में भारतीय सेना में शामिल हो गए। सेना में शामिल होने के बाद उनका एथलेटिक्स का सफर शुरू हुआ, और कुछ दिनों बाद ही उन्होंने इसे अपना करियर बना लिया।

सबसे पहले उन्होंने सेना में 400 जवानों के साथ क्रॉस कन्ट्री रेस दौड़ते हुए छठवाँ स्थान हासिल किया। इस दौड़ के बाद सेना के प्रशिक्षकों द्वारा उन्हें आगे के प्रशिक्षण के लिए चुन लिया गया। प्रशिक्षण शुरू होने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा क्योंकि यह उनके स्वर्णिम करियर की शुरुआत थी।

एथलेटिक्स में मिल्खा सिंह ने कौन से पदक जीते?

अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में उन्होंने सबसे पहले 1956 में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में आयोजित ओलंपिक खेलों के दौरान 200 और 400 मीटर की रेस में भाग लिया, लेकिन वे इसमें कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सके। लेकिन इन खेलों में उनके प्रदर्शन ने उन्हें भविष्य के लिए तैयार कर दिया और जल्द ही उन्होंने 1958 में राष्ट्रीय रिकॉर्ड स्थापित किया।
© AP Photo / Altaf QadriWax figure of former Indian athlete Milkha Singh is displayed at Madame Tussauds Wax Museum during the press preview in New Delhi, India, Thursday, Nov. 30, 2017.
Wax figure of former Indian athlete Milkha Singh is displayed at Madame Tussauds Wax Museum during the press preview in New Delhi, India, Thursday, Nov. 30, 2017. - Sputnik भारत, 1920, 20.11.2023
Wax figure of former Indian athlete Milkha Singh is displayed at Madame Tussauds Wax Museum during the press preview in New Delhi, India, Thursday, Nov. 30, 2017.
इसके बाद मिल्खा सिंह ने जापान के टोक्यो में हुए एशियन गेम्स में 200 और 400 मीटर में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। और 200 मीटर की रेस के दौरान उन्होंने एशियन रिकॉर्ड भी ध्वस्त किया। इसके दौरान उन्होंने पाकिस्तान के धावक अब्दुल खालिक को हरा दिया जिन्होंने 100 मीटर की दौड़ में स्वर्ण जीता था।
उसी साल खेले गए राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान मिल्खा सिंह ने 400 मीटर में 46.6 सेकंड के समय के साथ स्वर्ण पदक जीतते हुए नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। इसी के साथ वे राष्ट्रमंडल खेलों में ट्रैक और फील्ड में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बन गए।
इसके बाद उन्होंने 1962 में हुए एशियाई खेलों में 400 मीटर और 4x400 मीटर रिले में भी स्वर्ण पदक जीता।

मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक में कैसे चुके?

1960 में, इटली के रोम में ओलंपिक का आयोजन किया गया, जिसमें मिल्खा सिंह ने 45.8 सेकंड के समय के साथ अपना 400 मीटर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया, लेकिन वे शीर्ष 3 में आने से केवल 0.1 सेकंड से चूक गए।
इस प्रतिस्पर्धा में वे सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, क्योंकि उन्होंने ओलंपिक से पहले फ्रांस में खेले गए प्रारंभिक मुकाबलों में विश्व रिकॉर्ड बनाया। रोम ओलंपिक में फाइनल से पहले अपनी सभी 400 मीटर दौड़ में वे दूसरे स्थान पर रहे, लेकिन अंतिम इवेंट में उन्होंने जोरदार तरीके से कोशिश की लेकिन फिर भी वे चौथे स्थान पर रहे।
मिल्खा सिंह इस हार को अपने माता पिता की मृत्यु के बाद सबसे बुरी याद मानते थे। इस घटना ने मिल्खा सिंह को जड़ से हिला दिया था, और उनका खेल छोड़ने का विचार था। हालाँकि, उन्होंने 1962 में एशियाई खेलों में वापसी कर दो पदक जीते।

उन्होंने 1956 से लेकर 1964 तक तीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। भारत सरकार ने उन्हें उनकी खेल उपलब्धियों के लिए भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया।

एथलेटिक्स में एशियाई वर्चस्व की कैसी थी लड़ाई?

मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में बहुत रेस जीतीं लेकिन उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण दौड़ो में से एक थी पाकिस्तान के लाहौर में हुई खेल प्रतियोगिता, जिसमें मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान के अब्दुल खलिक को हराया।
खलिक अपने जमाने के सबसे तेज धावकों में से एक माने जाते थे। रेस के खत्म होने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने उन्हें "फ्लाइंग सिख" का खिताब दिया था।
इंडोनेशिया के जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में उन्होंने 400 मीटर और 4x400 मीटर रिले स्पर्धाओं में स्वर्ण जीतने के दो साल बाद 1964 में एथलेटिक्स से संन्यास ले लिया।
91 साल की उम्र में, 18 जून 2021 को मिल्खा सिंह कोविड के कारण इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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