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सुरक्षा और कूटनीति में संतुलन: भारत की बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने की चुनौतियां

© AP Photo / Anupam NathIndian Border Security Force personnel patrol past a fence on the India- Bangladesh border at Thakuranbari village, in the northeastern Indian state of Assam, Friday, Sept. 2, 2016.
Indian Border Security Force personnel patrol past a fence on the India- Bangladesh border at Thakuranbari village, in the northeastern Indian state of Assam, Friday, Sept. 2, 2016. - Sputnik भारत, 1920, 15.01.2025
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भारत ने उम्मीद जताई है कि बांग्लादेश द्वारा पहले की सभी सहमतियों को लागू किया जाएगा और सीमा पार अपराधों से निपटने के लिए एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाएगा।
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश छोड़ कर जाने के बाद नई दिल्ली और ढाका के बीच संबंधों में गिरावट देखी जा रही है। इसी कड़ी में भारत-बांग्लादेश सीमा पर कुछ क्षेत्रों में बाड़ लगाने के सीमा सुरक्षा बल (BSF) के प्रयासों पर बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (BGB) ने आपत्ति जताई है।
भारत में बांग्लादेश के कार्यवाहक उच्चायुक्त मोहम्मद नूरल इस्लाम को विदेश मंत्रालय ने सोमवार को तलब कर बताया कि सीमा पर बाड़ लगाने सहित सुरक्षा उपायों के संबंध में भारत ने दोनों सरकारों और सीमा सुरक्षा बल तथा बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश के बीच सभी प्रोटोकॉल और समझौतों का पालन किया है।
भारतीय मीडिया के अनुसार भारत और बांग्लादेश के मध्य दो बार स्थगित हो चुकी महानिदेशक (DG) स्तर की सीमा वार्ता अब 16 फरवरी से होने की संभावना है, जिसमें बाड़ लगाने और बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद घुसपैठ के प्रयासों में वृद्धि का मुद्दा चर्चा का मुख्य विषय होगा।
इसके अलावा विदेश मंत्रालय द्वारा दिए आधिकारिक वक्तव्य के अनुसार भारत ने सीमा पार आपराधिक गतिविधियों, तस्करी, अपराधियों की आवाजाही और तस्करी की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करके अपराध मुक्त सीमा सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
भारत द्वारा बांग्लादेश सीमा पर लगाई जा रही बाड़ पर भारत की जरूरतों और बांगलादेश द्वारा जताई जा रही आपत्तियों पर Sputnik भारत ने BSF के पूर्व ADG रहे डॉ पी के मिश्रा से बात की।
उन्होंने बताया कि बांग्लादेश विशेष रूप से भारत-बांग्लादेश सीमा पर, मुख्यतः मालदा, कूच बिहार, मचलीगंज और अगरतला जैसे क्षेत्रों में CPWD के सहयोग से BSF द्वारा बनाई जा रही सिंगल-रो बाड़बंदी को लेकर चिंतित है। इस समय मोहम्मद यूनुस सरकार के तहत BSF और BGB के बीच संबंध, साथ ही व्यापक भारत-बांग्लादेश संबंध खराब हो गए हैं।

BSF के पूर्व अधिकारी ने बताया, "बांग्लादेश सीमा पर बाड़बंदी का कार्य कई वर्षों से चल रहा है। दोनों देशों के बीच आपसी समझ है कि सीमा के 150 गज के भीतर कोई रक्षा निर्माण नहीं किया जाएगा। भारत ने बांग्लादेश को लगातार स्पष्ट किया है कि बाड़बंदी को रक्षा निर्माण नहीं माना जाता है। बांग्लादेश को पहले से ही पता था और उसने साझा नदी क्षेत्रों, जैसे ब्रह्मपुत्र नदी पर चार द्वीपों पर बाड़ लगाने का विरोध नहीं किया था, जो दोनों देशों के बीच विभाजित हैं।"

भारत-बांग्लादेश सीमा समतल भूभाग, नदी-तट, पहाड़ियों और जंगलों से होकर गुजरती है। इस पर बाड़ लगाने का उद्देश्य अवैध आव्रजन और सीमा पार आपराधिक गतिविधियों को रोकना है। बाड़ के समय से पूरा न होने के कारण सीमा पर उत्पन्न होने वाले हालातों पर बात करते हुए सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ पी के मिश्रा कहते हैं कि बांग्लादेश में वर्तमान सरकार के जमातियों और ISI से प्रभावित होने की वजह से इस बात की चिंता है कि 4,096 किलोमीटर की सीमा में से बची हुई 800 किलोमीटर की बाड़बंदी का फायदा उठाया जा सकता है।

उन्होंने बताया, "इस तरह की खाई का इस्तेमाल अवैध प्रवास, हथियारों की तस्करी और चरमपंथियों की भारत में घुसपैठ को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है, जिससे संभावित रूप से अशांति उत्पन्न हो सकती है। जबकि सीमा के दोनों ओर के समुदाय भाषाई और सांस्कृतिक संबंध साझा करते हैं। यह व्यापक रूप से समझा जाता है कि वे अलग-अलग राष्ट्रों से संबंधित हैं और 1947 से और बाद में 1971 की घटनाओं के बाद से वे तदनुसार समायोजित हो गए हैं।"

बांगलादेश सरकार द्वारा सीमा पर लगाए जा रही बाड़ पर दर्ज कराए गया विरोध पर सुरक्षा विशेषज्ञ मिश्रा ने कहा कि वर्तमान बांग्लादेशी सरकार का प्राथमिक विरोध इस अनुभूति से उपजा है कि बाड़बंदी पूरी करने से मवेशियों, हथियारों और अवैध पदार्थों सहित तस्करी पर अंकुश लगेगा, साथ ही भारत में चरमपंथियों का प्रवेश भी रुकेगा।

ढाका में भारत-बांग्लादेश सीमा सम्मेलनों में पिछले समझौतों ने एकल-तार बाड़ लगाने की अनुमति दी थी। बांग्लादेश की हालिया आपत्तियां एक गुप्त उद्देश्य का संकेत देती हैं। भारत का रुख स्पष्ट है क्योंकि बाड़ लगाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है और यह कोई रक्षा संरचना नहीं है।

सुरक्षा विशेषज्ञ ने बताया, "कूच बिहार और असम में एन्क्लेव एक्सचेंज के 2015 के संकल्प जैसे ऐतिहासिक उदाहरणों ने भूमि मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। हालांकि तस्करी और अवैध प्रवास सहित लगातार सुरक्षा चुनौतियों को दूर करने के लिए पाकिस्तान, म्यांमार और बांग्लादेश के साथ सीमाओं पर बाड़ लगाने को प्राथमिकता दी जा रही है।"

भारत ने देश की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए लगभग 800 किलोमीटर की शेष बाड़ लगाने का काम तेजी से पूरा किया जाना चाहिए। मोहम्मद यूनुस सरकार का दृष्टिकोण बाधाएं पैदा कर सकता है, लेकिन भारत बांग्लादेश और अन्य दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंधों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

डॉ पी के मिश्रा ने कहा, "नेतृत्व में परिवर्तन के कारण कूटनीतिक संबंधों में उतार-चढ़ाव के बावजूद भारत क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता देना जारी रखता है, जैसा कि एक्ट ईस्ट पॉलिसी जैसी पहलों में देखा गया है। चाहे बांग्लादेश चीन समर्थक हो या पाकिस्तान समर्थक, भारत संकट के समय अपने पड़ोसियों का समर्थन करते हुए सीमा को सुरक्षित करने के अपने प्रयासों में दृढ़ है, जैसे कि कोविड-19 महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान।"

अंत में उन्होंने बताया कि अवैध प्रवास और तस्करी के मुद्दों को हल करने के लिए भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने का काम 1971 के बाद आरंभ हुआ। इस पहल पर आपसी सहमति बनी थी, इस समझ के साथ कि बाड़ लगाने को रक्षा निर्माण नहीं माना जाएगा। हालांकि आतंकवादी शिविरों और बढ़ते उग्रवाद के बारे में वर्तमान चिंताओं को देखते हुए सीमा पर बाड़ लगाना भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य हो गया है।
Muhammad Yunus met Shehbaz Sharif at the sidelines of a conference in Egypt - Sputnik भारत, 1920, 24.12.2024
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