न्यूक्लियर सबमरीन को कितना महत्वपूर्ण माना जा रहा है इसका अंदेशा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे दूसरे स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की योजना पर भी प्राथमिकता दी जा रही है।
भारतीय नौसेना का सबमरीन बेड़ा उसकी सबसे कमज़ोर कड़ी है। बिना दुश्मन की नज़र में आए समुद्र में देर तक रहने के लिए न्यूक्लियर सबमरीन की सबसे कारगर है। अभी भारत के पास केवल एक न्यूक्लियर सबमरीन INS अरिहंत है।
सूत्रों के मुताबिक इस तरह की सबमरीन 96 प्रतिशत तक स्वदेशी होगी केवल कुछ तकनीक ही मित्र देशों से हासिल की जाएगी। भारतीय नौसेना इस तरह की 6 सबमरीन बनाने की योजना बना रही है और इसमें लगभग 17 अरब डॉलर या 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होंगे।
इस प्रोजेक्ट 75(A) को भारत सरकार ने फरवरी 2015 में मंज़ूरी दी थी। सबमरीन का डिज़ायन भारतीय नौसेना का वारशिप डिज़ाइन ब्यूरो तैयार कर रहा है। इस क्लास की पहली तीन सबमरीन को मंज़ूरी पहले चरण में मिलेगी और बाकी तीन को बाद में मंज़ूरी दी जाएगी।
अगर सब कुछ तय योजना के मुताबिक चला तो 2032 तक पहली सबमरीन तैयार हो जाएगी। नई स्वदेशी न्यूक्लियर सबमरीन SSN श्रेणी की होगी यानि जो न्यूक्लियर ईंधन से चले और दुश्मन के जंगी जहाज़ों या सबमरीन की तलाश कर उन्हें खत्म करे।
सूत्रों के मुताबिक हिंद महासागर में पड़ोसी देशों की बढ़ती हुई गतिविधियों पर नियंत्रण रखने के लिए सबमरीन को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
अभी भारतीय नौसेना के पास 7 सिंधु क्लास, 4 शिशुमार क्लास और 5 स्वदेशी कलवरी क्लास सबमरीन हैं। न्यूक्लियर सबमरीन INS अरिहंत भारतीय नौसेना की इकलौती SSBN न्यूक्लियर सबमरीन है जो न्यूक्लियर ईंधन से चलती है और लंबी दूरी की बैलेस्टिक मिसाइलों से लैस है। इस श्रेणी की न्यूक्लियर सबमरीन दुश्मन के ज़मीनी ठिकानों पर भी बहुत दूर से बड़ा हमला कर सकती हैं।
इस क्लास की दूसरी सबमरीन INS अरिघात है जो अभी अपने अंतिम परीक्षण पूरे कर रही है। कलवरी क्लास की अंतिम सबमरीन वागशीर के इस साल के अंत तक अपने समुद्री परीक्षण पूरे कर नौसेना में शामिल होने की संभावना है।