"भारतीय सेना के सूत्रों ने कहा है कि 5जी प्रयोगशालाओं और 6जी टेस्टबेड के रूप में मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की स्थापना भविष्य की युद्ध संबंधी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के प्रति भारत के समर्पण का प्रतीक है।"
"5जी और 6जी के लिए सैन्य-ग्रेड अनुप्रयोगों का विकास चल रहा है, जो भारतीय सेना को अत्याधुनिक तकनीक से जोड़ रहे हैं," अधिकारियों ने बताया।
"शत्रु के इलेक्ट्रॉनिक ऑर्डर ऑफ बैटल (ओआरबीएटी) को पढ़ने और पैटर्न को पहचान करने वाला सॉफ्टवेयर अब काम कर रहा है। ये उपकरण कर्मचारियों और कमांडरों को तेजी से विश्लेषण करने में और निर्णय लेने में सहायता करते हैं," अधिकारियों ने जोर देकर कहा।
"साइबर सुरक्षा की गंभीरता को स्वीकार करते हुए, भारतीय सेना सुरक्षा संचालन केंद्र 2.0 के साथ एकीकरण कर रही है, जो साइबर संकटों से निपटने में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पहल अत्याधुनिक साइबर सुरक्षा और साइबर फोरेंसिक टूल के निर्माण से मजबूत हुई है," सूत्रों ने जोर देकर कहा।
मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग AI अनुसंधान और विकास का केंद्र बन गया है। उल्लेखनीय नवाचारों में सेना के लिए सिचुएशनल अवेयरनेस मॉड्यूल (SAMA) और उपग्रह इमेजरी विश्लेषण के लिए उन्नत पैटर्न पहचान सॉफ्टवेयर निहित हैं।
सृजन, रक्षा भूमि और एमआईएसओ जैसी पहल डिजिटल नवाचार, परिचालन दक्षता बढ़ाने के प्रति सेना के समर्पण को दर्शाती है।
प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना जैसे कार्यक्रम सेना की लॉजिस्टिक बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सम्मिलित किया गया है, जिससे राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के माध्यम द्वारा तेजी से जुटाव और कुशल रसद आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
नवाचार के प्रति सेना की प्रतिबद्धता बौद्धिक संपदा अधिकार की मांग करने वाली 22 से अधिक परियोजनाओं के विकास से रेखांकित हो रही है।
भारतीय सेना कमांड साइबर ऑपरेशंस एंड सपोर्ट विंग (CCOSW) की स्थापना कर रही है। साइबरस्पेस सैन्य अभियानों का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गया है, जो ग्रे ज़ोन युद्ध और पारंपरिक परिदृश्यों दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
हाल के वर्षों में, वर्चुअल हनी ट्रैपिंग और हैकिंग के क्षेत्र में सेना ने विरोधियों की आक्रामकता को विफल करने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। इन चुनौतियों के प्रतिउत्तर में, रक्षा साइबर एजेंसी त्रि-सेवा स्तर पर काम करती है।