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अंतरिक्ष में रणनीतिक मुद्दों के लिए एक अलग पॉलिसी की जरूरत: विशेषज्ञ

भारत ने 60 के दशक में अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया। जिसके बाद भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने पहले उपग्रह आर्यभट्ट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इस सफलता के बाद इसरो ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज भारत का तिरंगा चंद्रमा पर लहरा रहा है।
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देश ने अंतरिक्ष का उपयोग की भारत की प्राथमिकता सामाजिक और आर्थिक विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया था। लेकिन पिछले दस सालों में अंतरिक्ष को लेकर भारत की सोच में काफी बदलाव आया है।
भारत अंतरिक्ष में महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम और राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष का उपयोग करने पर अधिक ध्यान दे रहा है। वहीं भारत के पड़ोसी देश चीन ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष का उपयोग करना शुरू कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप नई दिल्ली के भविष्य के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में राष्ट्रीय सुरक्षा पहलुओं की झलक देखे जाने की प्रबल संभवना है।
आमतौर पर भारत के मंगल, चंद्रयान 3 और आगे आने वाले गनगनयान जैसे मिशन यह सिद्ध कर रहे हैं कि भारत अंतरिक्ष में कहीं आगे आ चुका है और जल्दी ही हम देखेंगे कि धीरे धीरे नई दिल्ली ने बदलती अंतरिक्ष सुरक्षा स्थितियों को देखते हुए, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने विश्वसनीय प्रक्षेपण क्षमताओं और खुफिया, निगरानी और टोही एवं सैन्य उद्देश्यों के लिए पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों का मिश्रण विकसित किया है।
भारत के थिंक टेंक मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के सीनियर फेलो और सेंटर ऑन स्ट्रैटेजिक टेक्नोलॉजीज के प्रमुख रहे ग्रुप कैप्टन अजय लेले (सेवानिवृत्त) ने Sputnik भारत को बताया कि भारत का अंतरिक्ष को लेकर प्राथमिक लक्ष्य सामाजिक और आर्थिक तरक्की है, परंतु हमने अंतरीक्ष में सुरक्षा तंत्र बनाने की कोशिश की है।

"2019 में हमने मिशन शक्ति किया है। भारत की प्राथमिकता उसके शत्रु और पड़ोसियों पर आधारित है। अंतरिक्ष में सेना को लेकर चीन काफी कुछ कर चुका है। इसी तर्ज पर भारत भी अपने बल बूते तैयारी कर एक सुरक्षा तंत्र तैयार करना चाहता हैं। भारतीय सेना, नौसेना,वायु सेना तीनों को अंतरिक्ष की आवश्यकता है, जिसके लिए अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजे जा रहे हैं," ग्रुप कैप्टन अजय लेले (सेवानिवृत्त) ने कहा।

मिशन 'शक्ति' एंटी सैटेलाइट (ASAT) हथियार विकसित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के बीच एक संयुक्त कार्यक्रम है। इसके तहत पृथ्वी की कक्ष में चल रहे उपग्रहों पर हमला करते हैं।
भारत ने 27 मार्च, 2019 को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप प्रक्षेपण परिसर से एक एंटी-सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण मिशन शक्ति का आयोजन किया। जिसके तहत परीक्षण में पृथ्वी की निचली कक्षा (300 किमी की ऊंचाई) में एक चलते हुए उपग्रह को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया। इस परीक्षण मे सिद्ध किया कि भारत अपने देश में बनी तकनीक के द्वारा अंतरिक्ष में एक उपग्रह को समाप्त या उसे बाधित कर सकता है।
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देश में नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं और सैन्य क्षेत्रों की उभरती मांग को पूरा करने और स्वतंत्र उपग्रह नेविगेशन प्रणाली के आधार पर स्थिति, नेविगेशन और समय की उपयोगकर्ता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नेविगेशन सेवाओं के लिए NavIC उपग्रह को लॉन्च किया गया था। इसरो ने नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC) नामक एक क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली स्थापित की है। NavIC को पहले भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) के रूप में जाना जाता है।
ग्रुप कैप्टन लेले आगे बताते हैं कि कोई भी हवाई जहाज,पनडुब्बी और पानी के जहाज चलने के नेवीगेशन उपग्रह पर निर्भर करते हैं। इसलिए इस क्षेत्र में भारत भी भए निवेश कर रहा है। इसलिए हमने NavIC में निवेश किया है।
"सैन्य एप्लीकेशन तीन तरह की होती है, जिसमें पहला सैटेलाइट नेवीगेशन है इसलिए इसकी जरूरत के लिए भारत ने रीजनल सिस्टम NavIC को स्थापित किया है। दूसरा रिमोट सेंसिंग तकनीक जो दो तरीके से उपयोग में आने वाली तकनीक है, नागरिक क्षेत्र में इस्तेमाल की जाने वाली इस तकनीक को सैन्य क्षेत्र में भी काम में लिया जा सकता है। भारत के कार्टोसैट सीरीज के साथ कुछ अन्य सीरीज भी उपलब्ध है जिनका उपयोग रीमोट सेन्सिंग में किया जाता है उससे आप सैन्य खुफिया जानकारी भी इकट्ठा कर सकते हैं," अजय लेले ने कहा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने लगभग 2,650 किलोग्राम वजनी जीसैट-7 रुक्मिणी भारतीय रक्षा बलों के लिए विकसित किया था। यह देश में अपनी तरह का पहला सैन्य संचार उपग्रह था, जिसका प्राथमिक उपयोगकर्ता भारतीय नौसेना थी। रुक्मिणी इसरो के सात चौथी पीढ़ी के उपग्रहों में से अंतिम भी है।
लेले कहते हैं कि 2013 में हमने नेवी के के लिए रुकमणी नाम का पहला संचार उपग्रह लॉन्च किया था। 2019 में वायु सेना के लिए हमने एक सैटेलाइट लॉन्च किया है। और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आने वाले दिनों में हम आर्मी के लिए भी 2026 में संचार उपग्रह लॉन्च करेंगे।
"किसी भी देश के लिए बुनियादी जरूरतें नेविगेशन,कम्युनिकेशन और रीमोट सेन्सिंग (जानकारी इकट्ठा करना) होती हैं। भारत के पास आधारभूत संरचना है। सैन्य बलों के लिए मौसम की जानकारी होना भी जरूरी है। इसलिए जो अभी के आपके पास उपग्रह हैं उसी से आप वह जानकारी ले रहे हैं। वह सभी दो तरीके से उपयोग में आ रहे हैं," अजय लेले ने बताया।
चीन के अंतरिक्ष प्रोग्राम को काउन्टर स्पेस प्रोग्राम भी बोलते हैं। भारत का पड़ोसी देश चीन अंतरिक्ष ने धीरे धीरे आगे निकाल रहा है। अजय ने बताया कि चीन अपनी तैयारी अमेरिका को ध्यान में रख कर रहा है।लेकिन भारत को भी ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि चीन इस तकनीक का प्रयोग भारत के विरुद्ध भी कर सकता है।
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"चीन का अंतरिक्ष प्रोग्राम बहुत बड़ा है और वह भारत से कहीं पहले से इसमें निवेश कर रहे हैं। चीन का सैन्य अंतरिक्ष विकास अमेरिकी संकट पर दृष्टि रखे हुए है,इसलिए चीन ने बहुत अधिक मात्रा में इसमें निवेश किया है। इसलिए 2007 में चीन ने एंटी सैटेलाइट टेस्ट किया था। हालांकि भारत को भी तैयार रहने की आवश्यकता है, क्योंकि चीन का अमेरिका केंद्रित अंतरिक्ष प्रोग्राम अमेरिका के अतिरिक्त भारत के विरुद्ध भी उपयोग में लाया जा सकता है," अजय लेले कहते हैं।

विशेष रूप से चीन को लेकर बढ़ती सुरक्षा चिंताएं आने वाले वर्षों में नई दिल्ली के अंतरिक्ष लक्ष्यों का एक प्रमुख रणनीति चालकी से परिपूर्ण होंगी। अंत में उन्होंने कहा कि भारत धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। अभी अप्रैल 2023 में एक पॉलिसी आई है जो व्यावसायिक क्षेत्र को ध्यान में रख कर बनाई गई है। लेकिन भारत को आने वाले दिनों में अंतरिक्ष में रणनीतिक मुद्दों को देखने के लिए एक अलग पॉलिसी की आवश्यकता है
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