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नया रक्षा बजट: भारत की रूस के साथ संयुक्त उपक्रमों को बढ़ाने की तैयारी

भारत ने मंगलवार को 75 बिलियन डॉलर के रक्षा बजट की घोषणा की, जो कि वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए इसके कुल बजट आवंटन का लगभग 13 प्रतिशत है।
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इस पर रक्षा विशेषज्ञों ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत यूरेशियाई क्षेत्र के अपने दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदार से राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार के माध्यम से सैन्य वस्तुओं के अधिग्रहण को प्राथमिकता देने के अतिरिक्त रूस के साथ संयुक्त उपक्रमों को बढ़ाने की माँग कर रहा है।
इस सप्ताह की शुरुआत में, भारत सरकार ने चालू वित्त वर्ष में रक्षा व्यय के लिए 75 बिलियन डॉलर का आवंटन किया, जो अमेरिका, चीन और रूस के बाद विश्व में चौथा सबसे बड़ा रक्षा बजट है।
रक्षा बलों के आधुनिकीकरण के लिए बजटीय आवंटन मुख्य आकर्षणों में से एक रहा। सरकार ने विकास और नए अधिग्रहणों पर अपने पूंजीगत व्यय के हिस्से के रूप में पिछले वर्ष की तुलना में इस क्षेत्र में 9.4 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 20.5 बिलियन डॉलर से अधिक का कोष आवंटित किया है।

रक्षा मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, "बढ़ा हुआ बजटीय आवंटन सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक तकनीक, घातक हथियार, लड़ाकू विमान, जहाज, पनडुब्बियां, प्लेटफॉर्म, मानव रहित हवाई वाहन, ड्रोन, विशेषज्ञ वाहन आदि से लैस करने के उद्देश्य से नियोजित पूंजी अधिग्रहण पर वार्षिक नकद व्यय की आवश्यकता को पूरा करेगा।"

इसके अतिरिक्त, रक्षा मंत्रालय ने घरेलू क्षेत्र से खरीद के लिए 12.5 बिलियन डॉलर आवंटित किए।

मास्को से सैन्य उपकरणों की खरीद नई दिल्ली के लिए 'प्राथमिकता'

सैन्य विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) जे.एस. सोढ़ी के अनुसार, यह एक स्वागत योग्य निर्णय है कि इस वर्ष के बजट में नए अधिग्रहणों के लिए भारतीय रक्षा बलों को भारत सरकार द्वारा अधिक धनराशि आवंटित की गई है।
उन्होंने कहा कि इससे बड़े-बड़े रक्षा अधिग्रहणों में बहुत सहायता मिलेगी और रूस भारत का लंबे समय से रक्षा क्षेत्र में भरोसेमंद साझेदार है, इसलिए भारत को नए हथियार सिस्टम की आपूर्ति करने का उचित अवसर है।

सोढ़ी ने बुधवार को Sputnik India को बताया, "आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया पहल के अंतर्गत भारत में हथियार निर्माण में भारत और रूस के मध्य संयुक्त उद्यम (जेवी) ब्रह्मोस मिसाइलों और एके-203 असॉल्ट राइफलों के प्रदर्शन के उदाहरण के रूप में सफल रहा है। बजट 2024 के तहत, भारत रूस के साथ अपने संयुक्त उद्यम को बढ़ाने का प्रयास करेगा और दोनों मित्र देशों के मध्य अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए नए गठजोड़ करेगा।"

दूसरी ओर, भू-राजनीतिक टिप्पणीकार और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के अनुभवी लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) यशवंत उमरालकर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि रक्षा मंत्रालय द्वारा लगातार खतरे की आशंका जताते हुए रूस से विभिन्न अधिग्रहणों को प्राथमिकता दी।

उमरालकर ने कहा, "मास्को से सैन्य सामान खरीदने में नई दिल्ली को एक बड़ा लाभ यह है कि दोनों देशों के मध्य रुपया-रूबल व्यापार समझौता है। इसलिए, यूरेशियन देश से खरीद के लिए एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अंतर्गत भुगतान रूबल में किया जा सकता है, जिससे भारत को कीमती विदेशी मुद्रा बचाने में सहायता मिलेगी।"

इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि वर्तमान में रूस और अतीत में इसका पूर्ववर्ती सोवियत संघ सदा ही भारत के प्रति सकारात्मक रहे हैं। सैन्य बाजार खुफिया फर्म, ग्लोबल डाटा एयरोस्पेस, डिफेंस एंड सिक्योरिटी में विश्लेषक हरप्रीत सिद्धू का मानना ​​है कि सरकार की ओर से बढ़ी हुई फंडिंग से भारत और रूस के मध्य ब्रह्मोस मिसाइल जेवी के लिए अधिक खरीद ऑर्डर मिलेंगे।

सिद्धू ने जोर देकर कहा, "चूंकि ब्रह्मोस पहले से ही भारतीय नौसेना का पसंदीदा उत्पाद है, इसलिए इस फंडिंग से अधिक ऑर्डर मिलने की संभावना है, जिससे आय और उत्पादन का निरंतर प्रवाह सुनिश्चित होगा।"

रैमजेट इंजन को छोड़कर, ब्रह्मोस मिसाइल के लगभग 80% घटक पहले से ही पूरी तरह से भारत में बनते हैं, जो इसे पर्याप्त रूप से स्वदेशी उत्पाद बनाता है। रक्षा विश्लेषक ने देखा कि स्वदेशीकरण का यह उच्च स्तर घरेलू रक्षा उद्योग और प्रौद्योगिकी सफलताओं को और भी आगे बढ़ाता है और सरकार की "मेक इन इंडिया" रणनीति के साथ पूरी तरह से सामंजस्य रखता है।
उन्होंने टिप्पणी की कि बढ़ी हुई घरेलू खरीद सहयोगी उपक्रमों को प्रोत्साहित करती है, हालांकि, विशिष्ट मानदंडों को पूरा करना और उत्पादन को बढ़ाना समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। सिद्धू ने उल्लेख किया कि इन कठिनाइयों के बावजूद, भारतीय सशस्त्र बलों को घरेलू खरीद पर जोर देने से बहुत लाभ हो सकता है, जिसमें लागत बचत, बाहरी विक्रेताओं पर निर्भरता में कमी और अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार सामान तैयार करने की क्षमता निहित है।

उन्होंने रेखांकित किया, "सभी बातों पर विचार करने के बाद, यह वित्त पोषण आवंटन भारत के रक्षा विनिर्माण उद्योग को फलने-फूलने में सहायता करता है, जबकि भारतीय सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक, उचित मूल्य वाले और विशेष रूप से डिजाइन किए गए हथियारों तक पहुँच की गारंटी देता है।"

सिद्धू ने निष्कर्ष देते हुए कहा कि स्वदेशीकरण के उच्च स्तर के साथ, ब्रह्मोस इस अवसर का लाभ उठाने और अंतर्राष्ट्रीय रक्षा क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए आदर्श स्थिति में है।
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