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अमेरिका के विपरीत रूस के साथ रक्षा उपक्रमों में कोई शर्त नहीं

भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी आर्मर्ड व्हीकल्स निगम लिमिटेड (AVNL) कथित स्तर पर भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक हल्के टैंक के डिजाइन और विकसित करने हेतु रूस की रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (ROE) और हाई प्रिसिजन सिस्टम्स (HPC) के साथ सहयोग की घोषणा करने वाली है।
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सैन्य विशेषज्ञों ने कहा कि अमेरिका के विपरीत, भारत के साथ रूस की रक्षा साझेदारी में कोई शर्त नहीं है। इसलिए, देश की सेना के लिए हल्के टैंकों का विकास भारत-रूस संयुक्त उद्यम (JV) के सहयोग द्वारा करना एक अच्छा कदम है। क्योंकि दोनों देशों के मध्य इस तरह के गठजोड़ का इतिहास रहा है।
भारतीय सेना के अनुभवी लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) जे.एस. सोढ़ी के अनुसार, भारत और रूस के मध्य संयुक्त उद्यम रक्षा निर्माण की सहायता से भारतीय सशस्त्र बलों के लिए हल्के टैंकों का निर्माण दोनों देशों के मध्य अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए एक सही कदम है।

सोढ़ी ने शुक्रवार को Sputnik इंडिया से कहा, "रूस सदैव बिना किसी शर्त के महत्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकी (ToT) हस्तांतरित करने के लिए तैयार रहा है, जबकि अमेरिका किसी भी ToT के लिए अनिच्छुक है।"

इस बीच, भारत दोनों चैनलों पर कार्य कर रहा है, क्योंकि उसे बड़ी संख्या में हल्के टैंकों की आवश्यकता है।
कारगिल युद्ध के नायक मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. शशि भूषण अस्थाना ने Sputnik इंडिया के साथ बातचीत के दौरान कहा कि एक रास्ता स्वदेशी विनिर्माण का है जिसमें रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और निजी क्षेत्र की फर्म लार्सन एंड टूब्रो (L&T) संलग्न हैं, जबकि दूसरा एक खुली निविदा के माध्यम से उचित मात्रा में हल्के टैंक विकसित करना है जिसमें एक भारतीय रक्षा उपकरण निर्माता एक विदेशी सहयोगी के साथ गठजोड़ करेगा रक्षा मामलों के जानकार ने कहा।
पिछले महीने, भारत ने अपने स्वदेशी हल्के युद्धक टैंक जोरावर का अनावरण किया। इसे 2027 में भारतीय सेना में सम्मिलित किया जाना है।

अस्थाना ने जोर देकर कहा, "दिलचस्प बात यह है कि रूस भारत के साथ कई परियोजनाओं में एक बहुत ही जिम्मेदार और विश्वसनीय संयुक्त उद्यमी भागीदार रहा है, इसलिए कोई कारण नहीं है कि नई दिल्ली को हल्के टैंकों के निर्माण के मामले में मास्को की सहायता नहीं लेनी चाहिए।"

डिफेंस
भारतीय सेना ने हल्के युद्धक टैंक जोरावर का किया अनावरण
रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने विकास के लिए अपनी प्रसिद्ध स्प्रट-एसडी तकनीक की प्रस्तुत की है। इस बीच, रूस ने पहले ही अपने पैदल सेना डिवीजनों में स्प्रट-एसडीएम1 हल्के टैंक प्रस्तुत किए हैं। 2021 में, देश ने भारत को इस सैन्य उत्पाद के फील्ड ट्रायल देखने के लिए आमंत्रित किया, जो उस समय विकास के अधीन था।
स्प्रट-एसडीएम1 एक 18 टन का उभयचर टैंक है जिसे हवाई मार्ग से ले जाया जाने के साथ साथ इसे अंदर बैठे कर्मियों के साथ पैराशूट से भी उतारा जा सकता है। इसके अलावा इसे नौसेना के जहाज से भी उतारा जा सकता है। ये गतिशीलता कारक इसके पक्ष में कार्य करते दिख रहे हैं क्योंकि भारतीय सेना संभवतः इन टैंकों को कश्मीर और लद्दाख के पहाड़ी क्षेत्रों में नियुक्त करने की योजना बना रही है।

सोढ़ी ने जोर देकर कहा, "स्प्रट-एसडी तकनीक में बुर्ज गन की ऊंचाई और अजीमुथ का स्थिरीकरण शामिल है, जो एक हल्के टैंक की लड़ाकू शक्ति को काफी हद तक बढ़ाता है। ये दोनों उच्च ऊंचाई और पहाड़ी क्षेत्रों में हल्के टैंक के घातक प्रदर्शन में सर्वोत्कृष्ट हैं।"

इसके अतिरिक्त, भारतीय सशस्त्र बल स्प्रट-एसडी से परिचित हैं क्योंकि इस तकनीक का उपयोग देश के टी-72 और टी-90 टैंकों को फायर करने के लिए किया जाता है।

अस्थाना ने निष्कर्ष निकाला, "यह उन तकनीकों में से एक है जिस पर विचार किया जा रहा है, लेकिन रक्षा क्षेत्र में रूस के साथ भारत के अनुभव को देखते हुए, मुझे भरोसा है कि वे संयुक्त उद्यम के लिए सर्वोत्तम तकनीक साझा करने के लिए तैयार होंगे।"

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