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भारत छोड़ो आन्दोलन का दिवस 2023: भारत की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी की लड़ाई
भारत छोड़ो आन्दोलन का दिवस 2023: भारत की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी की लड़ाई
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भारत छोड़ो आंदोलन ब्रिटिश उपनिवेश से आजादी के लिए भारत के संघर्ष में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसके परिणामस्वरूप भारतीय जनमानस में नया आत्मविश्वास आया और उनमें पूर्ण निःस्वार्थता की भावना जागृत हुई।
2023-08-09T07:03+0530
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द्वितीय विश्व युद्ध में औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार का समर्थन करने से इनकार करते हुए सन 1942 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। आंदोलन ने भारत की तत्काल स्वतंत्रता और उपमहाद्वीप से ब्रिटिश वापसी का आह्वान किया। इसे दबा जाने के बावजूद यह आंदोलन बड़े पैमाने पर अहिंसक प्रतिरोध की ताकत का संकेत हुआ और इस तरह भारत को स्वतंत्रता देने के ब्रिटेन के फैसले को प्रभावित किया।आंदोलन की पृष्ठभूमिसन 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के खेमे में लड़ने के लिए भेजा गया था। कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि भारतीय सैनिकों को लोगों की सहमति के बिना युद्ध में भेजा जाना नहीं चाहिए। भारत के वायसराय भारतीय नेताओं को समझाने में विफल रहे, जिसके कारण कांग्रेस के मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया, जबकि ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी का उदय हुआ, जिसने भारत को स्वतंत्रता देने की योजना नहीं की थी, विशेषकर युद्ध के दौरान। सन 1940 में भारत के वायसराय ने ब्रिटेन के युद्ध के दौरान भारतीय सहयोग का अनुरोध किया, और कार्यकारी परिषद में अधिक भारतीय सदस्यों को जोड़ने और भारत का अपना संविधान बनाने के भारतीयों के अधिकारों पर विचार करने का वादा किया। लेकिन इस सौदे को कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि जरूरी शर्त भारत पर ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत ही थी। वायसराय के प्रस्ताव से असंतुष्ट महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा प्रदर्शित करने के लिए एक आंदोलन चलाया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 14,000 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया। सन 1942 में ब्रिटिश ने युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को मनाने के लिए स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल भारत भेजा। मिशन ने निर्वाचित भारतीय विधायिका से सत्ता साझी करने का वादा किया, लेकिन स्वशासन बनाने के उनके अधिकार सहित भारतीय मांगों को पूरा करने में विफल रहा। तत्काल स्वतंत्रता के लिए गांधी जी के आह्वान पर संभावित जापानी आक्रमण के डर और ऐसी स्थिति में भारत की रक्षा करने में ब्रिटिश अक्षमता ने प्रभाव डाला।क्यों और कब?भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 8 अगस्त, 1942 को 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के बंबई सत्र में 'भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू किया। आंदोलन का एकमात्र उद्देश्य अंग्रेजों को भारत से वापस जाने के लिए मजबूर करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू किया गया था, जिन्होंने बंबई के गोवालिया टैंक मैदान में 'करो या मरो' भारत छोड़ो भाषण दिया था। भारत छोड़ो प्रस्ताव 8 अगस्त 1942 को बंबई में कांग्रेस कार्यकारिणी समिति द्वारा पारित किया गया था। प्रस्ताव में आंदोलन के प्रावधानों को इस प्रकार बताया गया: कांग्रेस की विचारधारा के अनुरूप यह शांतिपूर्ण अहिंसक आंदोलन माना जाता था जिसका उद्देश्य अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्रता देने का आग्रह करना था।इस तथ्य के बावजूद कि अंग्रेज अपनी सारी शक्ति द्वितीय विश्व युद्ध में लगा रहे थे, फिर भी वे कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तैयार थे और आंदोलन शुरू होने के कुछ ही घंटों के भीतर कांग्रेस के लगभग सभी प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया गया।आंदोलन के ख़िलाफ़ कौन कौन था?गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन को विभिन्न कारणों से भारतीयों के विभिन्न समूहों के विरोध का सामना करना पड़ा था।मौलाना आज़ाद और जवाहरलाल नेहरू गांधी के प्रति वफादार रहे। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने कांग्रेस छोड़ दी और अल्लामा मशरिकी ने कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि यह आंदोलन "समय से पहले" था। मुस्लिम लीग, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जैसे राजनीतिक समूहों ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया। मुस्लिम लीग को डर था कि मुसलमानों के प्रति हिंदुओं की और से भेदभाव होगा। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा भी गाँधी के खेमे में नहीं थे, क्योंकि वे अंग्रेजों का समर्थन करने और युद्ध में भाग लेने के पक्ष में थे। उस समय भारत में सुभाष चंद्र बोस विशेष रूप से लोकप्रिय थे, जिनके पक्ष में बहुत भारतीय व्यापारी और छात्र भी थे जिन्होंने इस आंदोलन का समर्थन नहीं किया था।आंदोलन फीका कैसे पड़ गया?1944 तक आंदोलन के हिस्से के रूप में लगभग सभी प्रदर्शनों को दबा दिया गया था। अंग्रेजों ने गांधी जी के साथ-साथ 'कांग्रेस कार्यकारिणी समिति' के सभी सदस्यों को भी कैद कर लिया था। कई प्रमुख कांग्रेस नेता तीन साल से अधिक समय तक शेष दुनिया से अलग-थलग थे। चूंकि कई प्रदर्शन हिंसक थे, इसलिए अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर हिरासत में लेकर जवाब दिया था। 100,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिसके कारण अंततः आंदोलन का दमन हुआ। कई नागरिकों और प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने गोली भी मार दी थी।भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभावहालाँकि गांधी द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का तत्काल स्वतंत्रता प्राप्त करने के संदर्भ में कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन इसने भारत की अंततः स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सबसे पहले, इस आंदोलन ने कांग्रेस पार्टी को हर परिस्थिति में एकजुट रखा और इस आंदोलन ने अंग्रेजों के मन में यह तथ्य स्थापित कर दिया कि पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भारतीय उनकी अपेक्षा से अधिक गहराई तक जाने के लिए तैयार थे। दूसरा, इस आंदोलन ने अंग्रेजों को यह भी दिखाया कि भारत को वैश्विक नेताओं का समर्थन प्राप्त है। इसका प्रमाण तब मिला जब अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने ब्रिटिश प्रशासन से भारतीय नेताओं द्वारा रखी गई मांगों पर विचार करने का आग्रह किया था। तीसरा, जनता का मनोबल और ब्रिटिश विरोधी भावना को बढ़ाया गया। सन 1945 में युद्ध समाप्त होने के बाद कई अंग्रेज़ों के दिमाग में एकमात्र सवाल यह था कि वे शांतिपूर्वक और शालीनता से भारत से कैसे बाहर निकलें।
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भारत छोड़ो आन्दोलन का दिवस 2023: भारत की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी की लड़ाई
भारत छोड़ो आंदोलन ब्रिटिश उपनिवेश से आजादी के लिए भारत के संघर्ष में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसके परिणामस्वरूप भारतीय जनमानस में नया आत्मविश्वास आया और उनमें पूर्ण निःस्वार्थता की भावना जागृत हुई।
द्वितीय विश्व युद्ध में औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार का समर्थन करने से इनकार करते हुए सन
1942 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने
भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। आंदोलन ने भारत की तत्काल स्वतंत्रता और उपमहाद्वीप से ब्रिटिश वापसी का आह्वान किया। इसे दबा जाने के बावजूद यह आंदोलन बड़े पैमाने पर अहिंसक प्रतिरोध की ताकत का संकेत हुआ और इस तरह
भारत को स्वतंत्रता देने के ब्रिटेन के फैसले को प्रभावित किया।
सन
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के खेमे में लड़ने के लिए भेजा गया था।
कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि भारतीय सैनिकों को लोगों की सहमति के बिना युद्ध में भेजा जाना नहीं चाहिए। भारत के
वायसराय भारतीय नेताओं को समझाने में विफल रहे, जिसके कारण कांग्रेस के मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया, जबकि ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी का उदय हुआ, जिसने भारत को स्वतंत्रता देने की योजना नहीं की थी, विशेषकर युद्ध के दौरान।
सन 1940 में भारत के वायसराय ने ब्रिटेन के युद्ध के दौरान भारतीय सहयोग का अनुरोध किया, और कार्यकारी परिषद में अधिक भारतीय सदस्यों को जोड़ने और भारत का अपना संविधान बनाने के भारतीयों के अधिकारों पर विचार करने का वादा किया। लेकिन इस सौदे को कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि जरूरी शर्त भारत पर ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत ही थी। वायसराय के प्रस्ताव से असंतुष्ट महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा प्रदर्शित करने के लिए एक आंदोलन चलाया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 14,000 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया।
सन
1942 में ब्रिटिश ने युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को मनाने के लिए
स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल भारत भेजा। मिशन ने निर्वाचित भारतीय विधायिका से सत्ता साझी करने का वादा किया, लेकिन स्वशासन बनाने के उनके अधिकार सहित भारतीय मांगों को पूरा करने में विफल रहा। तत्काल स्वतंत्रता के लिए गांधी जी के आह्वान पर संभावित
जापानी आक्रमण के डर और ऐसी स्थिति में भारत की रक्षा करने में ब्रिटिश अक्षमता ने प्रभाव डाला।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 8 अगस्त, 1942 को 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के बंबई सत्र में 'भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू किया। आंदोलन का एकमात्र उद्देश्य अंग्रेजों को भारत से वापस जाने के लिए मजबूर करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू किया गया था, जिन्होंने बंबई के गोवालिया टैंक मैदान में 'करो या मरो' भारत छोड़ो भाषण दिया था। भारत छोड़ो प्रस्ताव 8 अगस्त 1942 को बंबई में कांग्रेस कार्यकारिणी समिति द्वारा पारित किया गया था। प्रस्ताव में आंदोलन के प्रावधानों को इस प्रकार बताया गया:
1.
भारत पर
ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत;
2.
सभी प्रकार के साम्राज्यवाद और फासीवाद से अपनी रक्षा के लिए स्वतंत्र भारत की प्रतिबद्धता की घोषणा;
3.
ब्रिटिश वापसी के बाद भारत की अस्थायी सरकार का गठन;
4.
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन को मंजूरी देना।
कांग्रेस की विचारधारा के अनुरूप यह शांतिपूर्ण
अहिंसक आंदोलन माना जाता था जिसका उद्देश्य अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्रता देने का आग्रह करना था।
इस तथ्य के बावजूद कि अंग्रेज अपनी सारी शक्ति द्वितीय विश्व युद्ध में लगा रहे थे, फिर भी वे कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तैयार थे और आंदोलन शुरू होने के कुछ ही घंटों के भीतर कांग्रेस के लगभग सभी प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
आंदोलन के ख़िलाफ़ कौन कौन था?
गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन को विभिन्न कारणों से भारतीयों के विभिन्न समूहों के विरोध का सामना करना पड़ा था।
मौलाना आज़ाद और
जवाहरलाल नेहरू गांधी के प्रति वफादार रहे।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने कांग्रेस छोड़ दी और
अल्लामा मशरिकी ने कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि यह आंदोलन "समय से पहले" था।
मुस्लिम लीग,
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,
हिंदू महासभा और
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जैसे राजनीतिक समूहों ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया। मुस्लिम लीग को डर था कि मुसलमानों के प्रति हिंदुओं की और से भेदभाव होगा। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा भी गाँधी के खेमे में नहीं थे, क्योंकि वे अंग्रेजों का समर्थन करने और युद्ध में भाग लेने के पक्ष में थे।
उस समय भारत में
सुभाष चंद्र बोस विशेष रूप से लोकप्रिय थे, जिनके पक्ष में बहुत भारतीय व्यापारी और छात्र भी थे जिन्होंने इस आंदोलन का समर्थन नहीं किया था।
आंदोलन फीका कैसे पड़ गया?
1944 तक आंदोलन के हिस्से के रूप में लगभग सभी प्रदर्शनों को दबा दिया गया था। अंग्रेजों ने गांधी जी के साथ-साथ 'कांग्रेस कार्यकारिणी समिति' के सभी सदस्यों को भी कैद कर लिया था। कई प्रमुख कांग्रेस नेता तीन साल से अधिक समय तक शेष दुनिया से अलग-थलग थे।
चूंकि कई प्रदर्शन हिंसक थे, इसलिए अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर हिरासत में लेकर जवाब दिया था। 100,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिसके कारण अंततः आंदोलन का दमन हुआ। कई नागरिकों और प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने गोली भी मार दी थी।
भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव
हालाँकि गांधी द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का तत्काल स्वतंत्रता प्राप्त करने के संदर्भ में कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन इसने भारत की अंततः स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सबसे पहले, इस आंदोलन ने
कांग्रेस पार्टी को हर परिस्थिति में एकजुट रखा और इस आंदोलन ने अंग्रेजों के मन में यह तथ्य स्थापित कर दिया कि पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भारतीय उनकी अपेक्षा से अधिक गहराई तक जाने के लिए तैयार थे।
दूसरा, इस आंदोलन ने अंग्रेजों को यह भी दिखाया कि भारत को वैश्विक नेताओं का समर्थन प्राप्त है। इसका प्रमाण तब मिला जब अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने ब्रिटिश प्रशासन से भारतीय नेताओं द्वारा रखी गई मांगों पर विचार करने का आग्रह किया था।
तीसरा, जनता का मनोबल और ब्रिटिश विरोधी भावना को बढ़ाया गया।
सन 1945 में युद्ध समाप्त होने के बाद कई अंग्रेज़ों के दिमाग में एकमात्र सवाल यह था कि वे शांतिपूर्वक और शालीनता से भारत से कैसे बाहर निकलें।