- Sputnik भारत, 1920
Sputnik स्पेशल
उबाऊ राजनीतिक मामले और अधिकारियों की टिप्पणियाँ आपको Sputnik से नहीं मिलेंगी! देश और विदेश से आम ही लोग अपनी भावनाएं और आकांक्षाएं Sputnik से साझा करते हैं। ह्रदय को छूनेवाली कहानियाँ, प्रेरणादायक सामग्रियाँ और आश्चर्यपूर्ण रहस्योद्घाटन प्राप्त करें!

कारगिल युद्ध के बाद फौज के आधुनिक बदलावों से हम किसी भी चुनौती से निपटने में सक्षम

© AP Photo / Tsering TopgyalIndians applaud as they watch a musical tribute to war heroes on the 15th anniversary of India's victory in the Kargil War, as a national flag flies in New Delhi, India, Saturday, July 26, 2014.
Indians applaud as they watch a musical tribute to war heroes on the 15th anniversary of India's victory in the Kargil War, as a national flag flies in New Delhi, India, Saturday, July 26, 2014.  - Sputnik भारत, 1920, 25.07.2024
सब्सक्राइब करें
विशेष
दो महीने से ज़्यादा समय तक चले इस भीषण युद्ध में भारतीय सैनिकों ने 26 जुलाई, 1999 को जीत हासिल की थी। ​​हालांकि इस युद्ध में भारतीय सेना ने लगभग 490 अधिकारियों और जवानों को खो दिया था।
भारत के इतिहास में हर साल 26 जुलाई को मनाए जाने वाला कारगिल विजय दिवस एक बहुत महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन देश भर के लोग 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध के बहादुर सैनिकों को याद करते हैं।
इस दिन भारत की पाकिस्तान पर शानदार जीत का जश्न भी मनाया जाता है। इस युद्ध की शुरुआत पाकिस्तानी घुसपैठियों के भारतीय सीमा में दाखिल होकर जम्मू और कश्मीर में कारगिल जिले के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा करने से हुई, जिसके बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाकर दुश्मन को सीमा से बाहर खदेड़ दिया।
यह दिन भारतीय सेना के उन वीर सूरमा योद्धाओं की याद में भी मनाया जाता है जिन्होंने दुश्मन को खदेड़ने के दौरान अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ का सम्मान करने के लिए 26 जुलाई को लद्दाख के द्रास का दौरा करेंगे। पिछले एक साल के दौरान जम्मू-कश्मीर के लोगों, स्कूली बच्चों, नागरिक गणमान्य व्यक्तियों और पूर्व सैनिकों को शामिल करते हुए कई गतिविधियां आयोजित की गई ताकि देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले बहादुरों को याद किया जा सके और उनका आभार व्यक्त किया जा सके।
दुर्गम क्षेत्र में लड़े गए इस युद्द में भारतीय सैनिकों ने गजब की बहादुरी का प्रदर्शन किया, जिसके लिए उन्हें बहादुरी पुरुस्करों से भी नवाजा गया। लेकिन इस युद्द में चार ऐसे योद्धा रहे जिन्हें वीरता के लिए बहादुरी का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र दिया गया।
कैप्टन विक्रम बत्रा (मरणोपरांत), लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे (मरणोपरांत), राइफलमैन संजय कुमार और तत्कालीन ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ऐसे वीर जिन्हें यह सम्मान मिला। ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव परमवीर चक्र हासिल करने वाले सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता थे।
Sputnik भारत ने एक्सक्लूसिवली ग्रेनेडियर और अब ऑनररी कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव से कारगिल दिवस के मौके पर उनके अनुभवों को साझा किया।
ऑनररी कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव कारगिल की सबसे मुश्किल चोटी पर सबसे भयानक लड़ाई लड़ने वालों में से एक थे, वह उस दिन को याद करते हुए कहते हैं कि 25 साल बाद टाइगर हिल को देखकर आज भी दुशमन की मोर्चेबंदी के साथ भारतीय सैनिकों का जोश, जुनून और लीडरशिप याद आती है जिसकी बदौलत भारतीय सैनिक इस 17000 फुट ऊंची चोटी पर चढ़े।

योगेंद्र सिंह यादव ने कहा, "18 ग्रेनेडीयर की घातक पलाटून के जवान 5 घंटे तक लड़ते रहे, और उन्होंने अपने खून से जीत का स्वर्णिम इतिहास लिखा। मैं जब इन पहाड़ियों को देखकर उस समय को याद करता हूँ तो मुझे वह योद्धा और मेरे साथी याद आते हैं तो मेरी आंखें नाम हो जाती हैं।"

योगेंद्र सिंह यादव को टाइगर हिल पर लड़ाई के दौरान 17 गोलियां लगी थीं और उनके कई साथी इस लड़ाई में शहीद हो गए थे। उनकी शहादत को याद करते हुए वह कहते हैं कि जब मैं पूरी तरह सिर से पैर तक खून में सराबोर था और मेरा साथी मुझे फर्स्ट ऐड दे रहा था कि अचानक एक गोली आकार उनके सिर को छेद कर बाहर निकल जाती है। वहीं मेरे साथ में बैठे दूसरे साथी को फेफड़ों में गोली लगती है जिसकी वजह से उसे खून की उलटी होने लगती हैं।

उन्होंने टाइगर हिल की लड़ाई को याद करते हुए कहा, "लोगों ने फिल्मों में अक्सर देखा होगा कि गर्दन कटने के बाद धड़ चलता रहता है वैसा मैंने अपनी आँखों से देखा है जब मेरा एक साथी मेरी मदद के लिए भाग कर आ रहा था तब पाकिस्तानी बम फटने से उसकी गर्दन कटकर गिर जाती है और चारों तरफ खून ही खून हो जाता है। इसके अलावा एक और साथी आगे बढ़ता है तो उसके हाथ पैर कटकर गिर जाते हैं, इस तरह मेरे तमाम साथी शहीद हो गए थे।"

यादव टाइगर हिल पर चढ़ने के दौरान आने वाली कठिनाइयों को याद करते हुए बताते हैं कि ऑक्सीजन की कमी और बर्फीले तूफान की वजह से पहाड़ पर चढ़ना बहुत मुश्किल था। इसके साथ साथ ऊपर से भारी गोला बारी चल रही थी। इन सभी परिस्थियों के बाद दुश्मन से हमारी हर हरकत को छुपाना था इसलिए हमें रात के समय चलना पड़ रहा था।

यादव ने कहा, "हिन्दुस्तानी सैनिकों ने इन मुश्किल हालातों के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और साहस और उत्साह के साथ आगे बढ़ते रहे और बढ़े भी क्यूँ ना क्योंकि वह केवल 21 सैनिक नहीं चड़ रहे थे बल्कि देश के 140 करोड़ लोग उनके पीछे चल रहे थे, जिसका एहसास पाकिस्तान को भी हो गया होगा था।"

आखिर में 1999 कारगिल युद्द के बाद 25 साल में सैन्य साजो सामान, तरीकों और यातायात साधनो के साथ सड़कों में आए बदलाव पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि पिछले 25 सालों में काफी बदलाव आया है।

योगेंद्र सिंह यादव ने अंत में कहा, "आप देख सकते हैं कि पहले इस क्षेत्र में कोई सड़क नहीं थी लेकिन अब यहाँ सड़कों के साथ साथ तमाम नई संरचनाए और पोस्ट बन गए हैं। इसके बाद नए हथियारों के साथ साथ फौज के प्रशिक्षण में भी काफी बदलाव देखा गया है। प्रकृति में बदलाव की तरह फौज में भी समय के साथ बदलाव किये जाते हैं, और इसलिए आज हम आज किसी भी तरह की नई चुनौती से लड़ने के लिए तैयार हैं।"

Indian commandos listen to their drill officers at a checkpoint on the Srinagar to Kargil road 05 June 1999.  - Sputnik भारत, 1920, 08.08.2023
Explainers
1999 में कारगिल युद्ध किसने जीता?
न्यूज़ फ़ीड
0
loader
चैट्स
Заголовок открываемого материала